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साधक ज्ञान का प्रकाश लेकर जीवनयापन करता है । में पृथ्वी तत्त्व श्रेष्ठ है-२३६
४. वायु तत्त्व में कलह, शोक, दुःख, भय, मृत्यु, उत्पात आदि फल होता है-२४०
५. अग्नि तत्त्व में प्रश्न करता को हानि, राज का नाश, पृथ्वी पर दुर्भिक्ष रोगादि की उत्पत्ति होती है-२४१
६. स्वर में आकाश तत्त्व चलने से दुर्भिक्ष, घोर विग्रह, देश भंग का भय, और चौपायों का नाश हो-२४२
७. पृथ्वी और जल तत्त्व हो तो वर्षा अच्छी हो, राज वृद्धि हो, प्रजा सुखी तथा समय अति श्रेष्ठ होगा-२४३
८. यदि पृथ्वी और जल तत्त्व के साथ चन्द्र तिथि का योग हो जाय तो चिदानन्द जी कहते हैं कि इसका फल बहुत ही उत्तम होता है-२४४
तत्त्वों में पदार्थों की चिन्ता (दोहा) मही मूल चिन्ता लखो, जीव वायु जल धार ।
तेज धातु चिन्ता लखो, शुन्य आकाश विचार ॥२४५॥
बहु-पाद पृथ्वी विषय, जुगपद जल' अरु वाय । ... अग्नि चतुष्पद नभ उदय, विगत चरण कहवाय ।।२४६॥ अर्थ-यदि पृथ्वी तत्त्व चलता हो तो जान लेना चाहिए कि पूछने वाले के मन में मूल की चिन्ता है । यदि जल तत्त्व अथवा वायु तत्त्व चलता हो तो जान लेना चाहिए कि पूछने वाले के मन में जीव की चिन्ता है । यदि अग्नि तत्त्व हो तो धातु की चिन्ता जाननी चाहिए। यदि आकाश तत्त्व हो तो विचार शून्य जानना चाहिए-२४५ ___ यदि पृथ्वी तत्त्व हो तो बहुत पैरों वाले की चिन्ता जाननी चाहिए । यदि । जल तत्त्व अथबा वायु तत्त्व हो तो दो पैरों वाले की चिन्ता जानना । यदि अग्नि तत्त्व हो तो चौपायों की चिन्ता जानना चाहिए। यदि आकाश तत्त्व हो तो बिना पैर के पदार्थ की चिन्ता जानना चाहिए-२४६
• 'पांचों तत्त्वों के स्वामी ग्रह तथा वार (दोहा) रवि राहु कुज तीसरो, शनि चतुर्थ बखान ।
.. पंच तत्त्व के भानु घर, स्वामी अनुक्रम जान ॥२४७॥
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