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हित, मित, मृदु और विवेक बोलना वाणी का विनय है ।
१३. यदि सूर्य स्वर में आकाश तत्त्व चलता हो तो प्रश्न कर्त्ता को कह देना चाहिए कि नपुंसक का जन्म होगा । यदि चन्द्र स्वर में आकाश तत्त्व चलता होगा तो बांझ कन्या का जन्म होगा - ३०४
१४. यदि दोनों (अपने और प्रश्न कर्त्ता) के सुखमना स्वर चलते हों तो कह देना चाहिए कि दो कन्याओं का जन्म होगा – ३०५
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१५. चन्द्र सूर्य दोनों स्वर चलते समय गर्भ सम्बन्धी प्रश्न करे और उस समय यदि सूर्य स्वर तेज़ चलता हो तो कह देना चाहिए कि दो पुत्रों का जन्म होगा —– ३०६
१६. कोई दोनों स्वर चलते समय गर्भ विषयक प्रश्न करे और उस समय यदि चन्द्र स्वर तेज़ चलता हो तो कह देना चाहिए कि दो कन्याओं का जन्म होगा - ३०७
तत्त्वों में स्त्री के गर्भ धारण तथा सन्तान जन्म सम्बन्धी दोहा - जौन तत में नारी कुं, रहे गर्भ अवधान । अथवा जन्मे तेहनो, फल अनुक्रम पहिचान ॥ ३०८ ॥
६३ - शिव स्वरोदय में लिखा है कि
शंखवल्लीं गवां दुग्धे पृथ्व्यापो बहते यदा ।
भर्तुरेव वदे वाक्यं गर्भं देहि त्रिभिर्वचः ।। २८७ ||
अर्थ-जिस समय स्वर में पृथ्वी अथवा जल तत्त्व बहता हो उस
समय स्त्री को गौ के दूध में शंखावली को पिलावे फिर स्त्री अपने भर्ता को तीन बार भोग की प्रार्थना करे – २८७
ऋतुस्नाता पिवेन्नारी ऋतुदानं तु योजयेत् ।
रूपलावण्य सम्पन्नौ नरसिंहः प्रसूयते ।। २८८ ।।
अर्थ - जब स्त्री ऋतु स्नान के अनन्तर उक्त औषध को पीले तब पुरुष ऋतुदान दे तो रूपवान, लावण्ययुक्त, ( सुन्दर ), पराक्रमी और पुरुषों में सिंह समान बालक पैदा होता है - २८८
सुषुम्ना सूर्यवाहेन ऋतु योजयेत् ।
गहीनः पुमानयस्तु जायते त्रासविग्रहः ॥ २८६ ॥
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