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विषयासक्त व्यक्ति के इहलोक, परलोक दोनों नष्ट होते है।
कामज्ञान" अष्ट पहर जो भान घर, चले निरन्तर वाय । तीन बरस का जीवना, अधकी रहे न काय ॥ ३५१ ॥ चले निरन्तर पिंगला, सोल पहर परमाण । दोय बरस काया रहे, पीछे जावे प्राण ॥ ३५२ ॥ भान निरन्तर जो चले. रात दिवस दिन तीन ।
बरस एक ही होय फुनि, दीरघ निद्रा लीन ॥ ३५३ ॥ प्रवीण पुरुषों के द्वारा भरे स्वर में निवेशित स्त्रियों के चित्त त्वरित ही हरे जाते हैं। इससे अन्य वश करने का कोई भी उत्तम विज्ञान नहीं है-६१
अरि-ऋणिक-चौर-दुष्टा अपरेप्युपसर्ग-विग्रहाद्याश्च । रिक्तांगे कर्त्तव्या जय-लाभ-सुखाथिभिः पुरुषैः ॥ ६२ ॥
अर्थ-शत्रु, ऋण वाला, चोर, दुष्ट पुरुष तथा अन्य भी ऐसे लोग वश करने के लिए तथा उपसर्ग, युद्ध इत्यादि कार्य जय लाभ सुख के अर्थियों
को रीते (खाली) स्वर में करने चाहिए-६२ ७०-अन्य रीति से काल ज्ञान इस टिप्पणी में लिख रहे हैं सो ज्ञात करें
- (क) १. स्वर द्वारा आयुष्य ज्ञान
(कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य कृत योग शास्त्रे) (१) विपरीत वायु चले तो उसका फल
यदि तीन पक्षों तक (१५ दिनों का पक्ष) वायु विपरीत उदय हो (अर्थात् सूर्य के बदले चन्द्र का और चन्द्र के बदले सूर्य का उदय हो) तो उस मनुष्य की छः मास में मृत्यु हो । दो पक्ष विपरीत स्वर चले तो प्रिय बन्धुको विपदा आवे । एक पक्ष तक यदि वायु विपरीत चले तो भयंकर व्याधि उत्पन्न हो । यदि दो तीन दिन विपरीत चले तो क्लेशादि पैदा हो। - (२) यदि चन्द्र नाड़ी में तीन दिन रात वायु चले तो रोग पैदा हो।
(३) एक महीने तक चंद्र नाड़ी में ही पवन चले तो रोग पैदा हो । (४) यदि दस दिन निरन्तर चन्द्र नाड़ी में ही पवन चले तो उद्वेग तथा
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