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राग द्वेष से मुक्त होना ही परिनिर्वाण है।
(१) यदि स्त्री को पृथ्वी तत्त्व में गर्भ रहे तो उस समय जो जीव गर्भ में आवेगा वह जन्म लेने पर राज्यमान्य, महान् सुखी, अथवा स्वयं ही राजा हो और कामदेव के समान रूप लावण्य युक्त होगा - ३०६
(२) यदि स्त्री को जल तत्त्व में गर्भ रहे तो उस समय जो जीव उसके गर्भ में आवेगा वह जन्म लेने पर धनवान, भोगी, सुखी, चतुर, विचक्षरण, नीतिवान होगा - ३१०
( ३ ) यदि नारी को अग्नि तत्त्व में गर्भ रहे तो उस जीव की उल्पायु होगी । यदि जीवित रहेगा तो अति दुखिया होगा और उसके ज़न्म लेने पर उसकी माता मर जायेगी - ३११
(४) यदि नारी को वायु तत्त्व में गर्भ रहे तो वह जीव जन्म लेने पर दुःखी, देश भ्रमण करने वाला, विकल चित्त वाला, और मूर्ख होगा। यह बात बुद्धिमानों को निःसन्देह जाननी चाहिए - ३१२
(५) यदि आकाश तत्त्व में गर्भ रहे तो गर्भ गिर जायेगा ।
तथा इन उपर्युक्त तत्त्वों में जो फल बतलाया गया है यदि इन तत्त्वों में सन्तान का जन्म हो तो भी वैसा ही फल समझ लेना चाहिए - ३१३ (६) पृथ्वी तत्त्व में पुत्र जल तत्त्व में पुत्री का जन्म हो । वायु तत्त्व में गर्भ चल जायेगा अर्थात् जो पिण्डाकृति बनी है वह गल जायेगी । अग्नि तत्त्व में गर्भ गिर जायेगा तथा आकाश तत्त्व में नपुंसक का जन्म होगा - ३१४
( ७ ) अपने अपने स्वरों में इसका प्रधान विचार है, तत्त्व का विचार करना यह दूसरा आधार है -३१५
(८) स्वर के संक्रम समय यदि कोई आकर गर्भ सम्बन्धी प्रश्न करे अथवा उस समय यदि गर्भ रहे तो उसके गर्भ का अवश्य नाश हो जायेगा - ३१६ इस प्रकार हमने यहां पर संक्षेप से गर्भ सम्बन्धी विवेचन किया है । ६४
६४ – स्वरोदय में कुछ विशेष ज्ञातव्य प्रश्न जो कि इस ग्रन्थ में नहीं दिये गये यहां संक्षेप से लिखते हैं ।
(१) वर्षा सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर स्वरोदय के मत से :
वर्षा सम्बन्धी प्रश्न पृथ्वी तत्त्व में किया जावे तो वर्षा बरसेगी । जल
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