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परमार्थ रूप प्रात्मबोध से शून्य प्राणी कभीभी निर्वाण नहीं पा सकता। [१०३ ___ (२) सूर्य स्वर चल रहा हो तो पूर्व और उत्तर दिशा में गमन करने से मन की इच्छा पूरी होगी, ऐसा स्वर विज्ञान के जानकारों का कहना है-३१६
(३) विदिशाओं में अपनी-अपनी नाड़ी के अनुसार जाने से ही कार्य की सिद्धि होगी। नाड़ी के विपरीत विदिशाओं में जाने से कार्य की सिद्धि कदापि नहीं होगी-३२०
(४) चन्द्र स्वर चलता हो तो पूरब और उत्तर दिशा को नहीं जाना चाहिए जो जायगा वह या तो परदेश में ही मर जायेगा अथवा भारी कष्ट पायेगा-३२१
(५) यदि सूर्य स्वर चलता हो तो दक्षिण और पश्चिम दिशा की तरफ नहीं जाना चाहिए यदि जायेगा तो उसकी मृत्यु होगी और यदि मौत से बच भी जायेगा तो मृत्यु तुल्य कष्ट को भोगना पड़ेगा–३२२
(६) दूर गमन के लिए हमेशा प्रबल योग में प्रयाण करना चाहिये और निकट में जाने के लिए मध्यम योग में भी प्रस्थान कर सकते हैं–३२३.
(७) कोई परदेश जाने के लिए प्रश्न पूछे, यदि पृथ्वी तत्त्व अथवा जल तत्त्व चलता हो तो शुभ है-३२४
(८) ऊर्ध्व दिशा का स्वामी चन्द्र है, अधो दिशा का स्वामी सूर्य है । क्रूर और सौम्य कार्यों के विचार के साथ दिशा का विचार करके परदेश गमन करते समय तत्त्व को देखकर शुभ फलदाता तत्त्व में जाना चाहिये-३२५
(९) सुखमना स्वर में कभी भी परदेश नहीं जाना चाहिये यदि जायेगा तो कार्य में हानि तथा मरण होगा -३२६
(१०) पांच तत्त्वों में एक-एक के पांच भंग होने से कुल पच्चीस भंग होते हैं। इनका स्वरूप बड़े ग्रन्थों से ज्योतिषी को जानना चाहिये-३२७
६६परदेश गये हए के लिये प्रश्न विचार दोहा—जो नर वसत विदेश में, ताकी पूछे बात ।
सुखी है अथवा दुःखी, ता थी एम कहात ॥ ३२८ ॥
६६-आयाति गतो वरुणे भौमे तव तिष्ठति सुखेन ।
यात्यन्यत्र श्वसने मृत इति वह्नौ समादेश्यम् ॥ ५५ ॥ (ज्ञानार्णवे)
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