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असंयम ही सबसे बड़ा शत्रु
है ।
महा कटक सन्मुख चले, थोड़ा सा दल जोड़ ।
पूरण तत प्रकाश में, जीत लहे विधि कोड़ ॥ २७४ ॥
अर्थ - १. यदि कोई चन्द्र स्वर चलते समय - सामने अथवा ऊंचे रहकर लड़ाई के विषय में प्रश्न करे और प्रश्न के अक्षर सम (२, ४, ६, ८, १० इत्यादि) हों तो कह देना चाहिए कि तुम्हारी जीत होगी - २६६
२. यदि कोई दाहिने अथवा पीछे रहकर लड़ाई के विषय में प्रश्न करे और प्रश्न के अक्षर विषम ( १, ३, ७, ६ इत्यादि) हों और उस समय सूर्य स्वर चलता हो तो कह देना चाहिए कि तुम्हारी जीत होगी - २७०
३. यदि कोई युद्ध के विषय में पूर्ण स्वर की तरफ से आकर दोनों पक्ष के लिए प्रश्न पूछे तो जिसका नाम पहले बोले उसकी जीत होगी - २७१
४. यदि खाली स्वर की तरफ से दोनों पक्षों के लिए युद्ध का प्रश्न करे तो जिसका नाम पहले लिया जाएगा उसकी हार होगी और दूसरे पक्ष की जीत होगी - २७२
१. अथवा यदि खाली स्वर में युद्ध के लिए प्रयाण करे तो महाबली राजा भी अल्पबली से हार जाए – २७३
२. यदि पूर्ण स्वर में युद्ध के लिए प्रयाण करे तो उसके पास थोड़ी-सी सेना होने पर भी बहुत बड़ी सेना को हराकर सब प्रकार से विजय प्राप्त करे—२७४
युद्ध करने तथा युद्ध प्रयाण के विषय में परन दोहा - मही तत्त्व में युद्ध वा करे प्रश्न परियाण ।
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दोऊ दल सम उतरें, इम निश्चय करि जान ।। २७५ ।। करे प्रश्न परियाणवा, वरुण तत्त्व के मांहि । दोय मिलें तिहां परस्पर, युद्ध जानजो नांहि ॥ २७६ ॥ महि उदक होय एक कुं, दूजा कुं जो नांहि । महि वरुण तहां जीतिये, या में संशय नांहि ॥ २७७॥ प्रश्न करे अथवा लड़े, अथवा करे प्रयाण । बहुत हुताशन तेहनी, रण में होवे हान || २७८ ||
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