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शंकाग्रस्त हो जीवन यापन मतं करो ।
चर (सूर्य स्वर ), स्थिर ( चन्द्र स्वर ) तथा तीसरे द्विस्वभाव ( सुखमना स्वर) के विषय में सब बात कह दी है। अनुक्रम से जिस-जिस स्वर में जो-जो कार्य करने के लिए हम कह आये हैं वैसा-वैसा उस उस स्वर में कार्य प्रारम्भ करने से अवश्य कार्य में सफलता प्राप्त होगी - २२२
हुए श्वास की गति का प्रमारण सब से अधिक बढ़ जाता है । जो मनुष्य श्वास की उपर्युक्त स्वाभाविक गति के प्रमाण में जितनी - जितनी अधिक कमी कर सकेगा अर्थात् घटा सकेगा, वह उतने उतने प्रमाण में अपनी आयुष्य की वृद्धि कर सकता है ।
(ट) स्वर द्वारा शक्तियों की प्राप्ति : - ( १ ) श्वास की गति को १२ अंगुल तक लावे तो प्रारण स्थिर होता है । (२) श्वास की गति को १२ अंगुल से घटा कर १० अंगुल तक लावे तो महान आनन्द प्राप्त हो । (३) नौ अंगुल तक ले जावे तो उसमें कवित्व शक्ति आती है । ( ४ ) आठ अंगुल तक लावे तो वाक् सिद्धि होती है । (५) सात अंगुल तक लावे तो दूर दृष्टि प्राप्त होती है । (६) छः अंगुल तक लावे तो प्रकाश में उड़ने की शक्ति प्राप्त करे । ( ७ ) पांच अंगुल तक लावे तो उसमें प्रचंड वेग आता है । ( ८ ) चार अंगुल तक लावे तो सब सिद्धियां प्राप्त होती हैं । ( ६ ) तीन अंगुल तक लावे तो उसे नब निधियां प्राप्त होती हैं । (१०) दो अंगुल तक लावे तो अनेक रूप धारण कर सकता है । (११) एक अंगुल तक लावे तो अदृश्य हो सकता है । ( १२ ) श्वास की गति को १२ अंगुल से घटा कर प्रारण की गति का प्रमाण नखाग्र भाग तिना रह जाये तब यमराज भी स्पर्श नहीं कर सकता अर्थात् वह अमर बन जाता है ।
(ठ) शब्द ब्रह्म अथवा प्रांतरिक नादः - इसके नौ भेद हैं- यथा घोष, कांस्य, श्रृंग, घण्टा, वीणा, बांसुरी, दुन्दुभी, शंख और मेघ गर्जना | अभ्यास में पहले इन्हीं शब्दों का अन्तरात्मा से उद्घोष होता है जिसे अभ्यासी सुनता है । किन्तु अभ्यास सिद्ध हो जाने पर इन शब्दों से भी भिन्न एक और शब्द होता है जिसे तुंकार का शब्द ब्रह्म कहा जाता है । उपर्युक्त नौ प्रकार के शब्द, शब्द ब्रह्म की प्रथमावृत्ति हैं और द्वितीय वृत्ति में शब्द ब्रह्म का तुंकार ही है । तुंकार शब्द से काल का भय सदा के लिए मिट जाता है और प्राणी इच्छानुसार जीवित
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