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ऊपर नीचे से खूब दवा लें ] यह कार्य करके एकाग्र चित्त से गुरु की बतलाई हुई रीति से भ्रकुटी में देखना चाहिये - २२४
भ्रकुटी में जैसा और जिस रंग का बिन्दु दिखलाई दे वही तत्त्व जानना चाहिये । जैसे यदि पीला रंग हो तो स्वर में पृथ्वी तत्त्व जानें, यदि सफेद रंग हो तो जल तत्त्व जानें, यदि लाल रंग हो तो श्रग्नि तत्त्व जानें, यदि हरा अथवा नीला रंग हो तो वायु तत्त्व जानें और यदि काला रंग हो तो आकांश तत्त्व जानें । " अर्थात् जैसा वर्ण देखे वैसा तत्त्व जानें, इनके साथ श्वास की - तत्त्वों की पहचान के लिये अन्य उपाय भी हैं सो निम्न प्रकार से जानना चाहिये
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स्वयं अनाथ है फिर दूसरों का नाथ कैसे हो सकता है ।
(१) दर्पणेन समालोक्य तत्र श्वासं विनिः क्षिपेत् । आकारैस्तु विजानीयात् तत्त्वभेद विचक्षणः || १५२ चतुरस्र चार्धचन्द्र त्रिकोणं वर्तुलं स्मृतम् । बिन्दुभिस्तु नभो ज्ञेयमाकारैस्तत्त्व लक्षणम् ।।१५३
अर्थ – दर्पण अर्थात् मुंह देखने का कांच अपने होठों के पास लगा कर उसके ऊपर बलपूर्वक अपने श्वास को छोड़ें, ऐसा करने से उस दर्पण पर जिस प्रकार का चिन्ह पड़े उसे देख कर तत्त्व का निर्णय करें—१५२
यदि समचौरस आकार दिखलाई दे तो पृथ्वी तत्त्व, अर्ध चन्द्रका आकार दिखलाई दे तो जल तत्त्व, त्रिकोण दिखलाई दे तो अग्नि तत्त्व, गोल ( अथवा ध्वजा ) का आकार दिखलाई दे तो वायु तत्त्व, बिन्दुओं का आकार दिखलाई दे अथवा कोई आकार न हो तो प्रकाश तत्त्व जानना चाहिये - १५३
[ तुलना के लिये देखें इसी ग्रंथ का पद्य नं० - ११४ - ११५]
(२) पांच रंगों की गोलियां (पीली, सफेद, लाल, हरी और काली एक-एक रंग की तथा एक गोली विचित्र (चित्तकबरी) बनाकर इन छह गोलियों को अपने पास रख लेना चाहिये और मन में किसी तत्त्व का विचार करना हो उस समय इन गोलियों में से किसी एक गोली को
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