________________
जो आत्मा का ध्यान करता है, उसे परम समाधि की प्राप्ति होती है।
शरीर में मेरुदंड के दक्षिण (दाहिनी दिशा की तरफ पिंगला (सूर्य) नाड़ी है तथा वाम (बायीं) तरफ इंगला (चन्द्र) नाड़ी है । इन दोनों नाड़ियों के मध्य में सुषुम्ना नाड़ी रहती है। सुखमन नाड़ी के प्रकाश से नाक के दोनों नथनों से स्वर (श्वास) चलता है ॥१३-१४-१५॥ (दोहा) डाबा सुर जब चलत है, चन्द्र उदय तब जान ।
जब सुर चालत जीमणो, उदय होत तब भान ॥१६॥ अर्थ–इनमें से जब (इंगला नाड़ी द्वारा) बांया (डाबा) स्वर चलता है तब चन्द्र का उदय जानना चाहिए तथा जब (पिंगला नाड़ी द्वारा) दाहिना (जीमना) स्वर चलता है तब सूर्य का उदय जानना चाहिए-१६
स्वरों के कार्य (दोहा) सौम्य काज कुं शुभ शशि, क्रूर काज़ के सूर। ..
इम विधि लख कारज करत, पामे सुख भरपूर ॥१७॥ . : दोऊ स्वर सम संचरे, तब सुखमन पहिछान । ...
तामे कोऊ कारज करत, अवस होय कछु हान ॥१८॥ ३-प्रत्येक मनुष्य जब नाक द्वारा श्वास लेता है तब उसकी नासिका के दोनों
छेदों में से कभी तो नासिका के एक छेद में से श्वास निकलता है और दूसरा छेद बन्द रहता है जब जिस छेद से श्वास निकलता हो उसी स्वर को चलता समझना चाहिए तथा कभी-कभी एक छेद से तेजी के साथ श्वास निकलता है और एक छेद से धीमा स्वर निकलता है अर्थात् दोनों छेदों में से स्वर तो निकलता है परन्तु समान स्वर नहीं निकलता । जिस तरफ का श्वास तेजी के साथ निकलता है उसी स्वर को चलता हुआ समझना चाहिए । दाहिने छेद से यदि वेग से स्वर निकले तो उसे सूर्य स्वर कहते हैं। बाएं छेद से यदि वेग से स्वर निकले तो चन्द्र स्वर समझना चाहिए । दोनों छेदों में से श्वास निकलता हो तो उसे सुखमना स्वर कहते. हैं । सुखमना स्वर प्रायः उस समय चलता है. जब एक स्वर से दूसरा स्वर बदलना चाहता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org