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काय रखने वाला संयमी नहीं होता।
- अर्थ-जिनमें किसी भी प्रकार का न रूप है न पौदगलिक आकार है तथा आठ गुणों सहित जो मोक्ष पद को प्राप्त कर चुके हैं ऐसे सिद्धों के गुणों का ध्यान करते हुए उन्हीं में जो तल्लीन हो जाये, वह रूपातीत ध्यान को पाता
पिंडस्थ ध्यान यानी प्राणायाम करने वाले की मानसिक दशा .(चौपाई) प्राणायाम ध्यान जो कहिये । ते पिंडस्थ ध्यान भवि लहिये ।
मन अरु पवन समागम जानो। पवन साध मन निज घर आनो ॥६७ अह निस अधिक प्रेम लगावे । जोगानल घट मांहि जगावे ॥ अल्प आहार प्रासन दृढ़ करे। नयन थकी निद्रा परिहरे ॥ ६८॥ काया जीव भिन्न करि जाने । कनक उपल नी परे पहिछाने । भेद दृष्टि राखे घट मांहि । मन शंका आने कछु नांहि ॥ ६६ ॥ कारज रूप कथे मुख वाणी। अधिक नांहि बोले हित जानी ।।
स्वप्न रूप जाने संसार । तन धन जोबन लखे असार ॥ १० ॥ अर्थ-प्राणायाम ध्यान पिंडस्थ ध्यान को कहते हैं । जो योगी प्राणायाम का साधन करना चाहता है वह मन और पवन' का समागम जानकर पवन को साध कर मन को आत्मा में लीन कर दे-६७
रात दिन मन को एकाग्र करने के लिए अधिक लगन से योगानल को अपने घट में जाग्रत करे । अल्पाहार करे, आसन दृढ़ रखे, आंखों से नींद को दूर कर दे-६८ ___ काया और जीव को सोने और पत्थर के समान भिन्न समझ कर शरीर
और जीव में भेद दृष्टि रखे, मन को शंका रहित बना दे---६६ ... मुख से अधिक न बोले । आवश्यकता अनुसार ही बोलने में अपना हित समझे। तन, धन और जोबन को असार समझ कर इस संसार को असार जाने-१००
स्वरोदय सिद्धि की विधि (चौपाई) श्री जिन वाणी हिये दृढ़ राखे । शुद्ध ध्यान अनुभव रस चाखे ।
. विरला सो जोगी जग मांहि । ताकुं रोग सोग भय नाहि ॥ १०१॥
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