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असंतुष्ट मालिकों का कहां तथा सभी जगह भय रहता है। प्रात समय शशि पुर विषय, मही तत्त्व जो होय । ता ते सर्व विचारिये, सुखदायक अति होय ॥१३५।। घण वृष्टि होवे घणी, समय होय श्रीकार। राजा परजा के हिये, हर्ष सन्तोष विचार ।।१३६।। ईति भीति उपजे नहीं, मोटा भय नावे कोय । .
चिदानन्द इम चन्द में, क्षिति तत्त्व फल होय ॥१३७।। अर्थ-चैत्र सुदि (चांद्रमास) की प्रतिपदा के दिन लगन का विचार कर कौन से स्वर में कौन-सा तत्त्व चलता है उसका विचार करना चाहिए-१३४
यदि प्रातः समय चंद्र स्वर में पृथ्वी तत्त्व चलता हो तो समझना चाहिए कि यह वर्ष अति सुखदायक होगा। वर्षा बहुत होगी। समय उत्तम होगा। राजा और प्रजा को सब प्रकार से हर्ष तथा सन्तोष होगा। भय और कष्ट का सर्वथा अभाव होगा। किसी भी प्रकार का इस वर्ष में उत्पात नहीं होगा१३५ से १३७
२. जल तत्त्व (दोहा)-चिदानन्द जो चंद में, प्रात उदक परवेश ।
तो ते समय सुभिक्ष अति, वृष्टि देश विदेश ।।१३८॥ शान्ति पुष्टि होवे घणी, धर्म तणो अति राग। अानन्द हिये अति उपजे, दान अर्थ धन त्याग ।।१३।। जल धरणी दोऊ बहे, दिवसपति घर आय ।
प्रातकाल तो ते बरस, मध्यम समय कहवाय ॥१४०।। अर्थ-यदि उस दिन प्रातःकाल चन्द्र स्वर में जल तत्त्व हो तो उसका फल यह होगा कि इस वर्ष में सब प्रकार से सुभिक्ष होगा । देश-विदेश में उत्तम प्रकार की वृष्टि होगी, शान्ति की बहुत पुष्टि होगी अर्थात् सर्वत्र सब प्रकार से शान्ति का प्रसार होगा तथा लोगों का धर्म के प्रति अति अनुराग होगा। सब प्रजा के मन में सब प्रकार का आनन्द अनुभव होगा एवं खुले और उदार दिल से धन का दान देने के लिए प्रजा त्याग वृत्ति वाली होगी-१३८-१३९
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