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अवस्था मावसे कोई बालक नहीं होता किन्तु कर्त्तव्यहीन बालक है। [a निवारण तथा शोक दूर करना, विषाद-विवाद मिटाना, ज्वर के अन्त में साथ शान्ति में तथा सबः शुभ कार्यों में, तीर्थ यात्रा, मुसाफरी इत्यादि जो-जो सर्व कार्य कहे हैं अथवा जो नहीं भी कहे किन्तु यदि वे स्थिर और शान्त हों, उन्हें चाहे रात्रि हो अथवा दिवस, चन्द्र स्वर में करने चाहिएं क्योंकि इन कार्यों में चन्द्र स्वर प्रशस्त है-२०३
चन्द्र योग (चन्द्र स्वर) स्थिर कार्यों के लिए प्रधान है । यहां पर हमने इस का थोड़ा सा वर्णन कर दिया है-२०४
सूर्य स्वर में कार्य विचार (चौपाई) स्वर सूरज में करिये जेह। सुनो श्रवण दे कारज तेह ।। २०४ ॥
विद्या पढ़े ध्यान जो साधे । मंत्र साध अरु देव आराधे ॥ अरज़ी हाकम के कर देवे । अरि विजय का बीड़ा लेवे ।। २०५ ॥ विष अरु भूत उतारण जावे । रोगी कुं जो दवा खिलावे ।। विघन हरण शान्ति जल नाखे। जो उपाय कुष्टि कुंभाखे ॥२०६ ।। गज बाजी वाहन हथियार । लेवे रिपु विजय चित्त धार ।। खान पान कीजे असनान । दीजे नारी को ऋतु दान । २०७॥ नया चोपड़ा लिखे लिखाये । वणिज करत कछु वृद्धि थावे ॥ भानु जोग में ये सहु काज । करत लहे सुख चैन समाज ॥ २०८ ॥ भूपति दक्षिण स्वर में कोई । युद्ध करण जावे सुन जोई ॥ रण संग्राम मांहि जस पावे । जीत करि पाछो घर आवे ।। २०६॥ सागर में जो पोत चलावे । वंछित द्वीप वेगे ते पावे ।। वैरी भवन गवन पग दीजे । भानु जोग में तो जस लीजे ।। २१० ॥ . ऊंट महीष गो विक्रय करतां । साट वदत सरिता जल तरतां ॥ करज़ द्रव्य काहु कुं देतां । भानु जोग शुभ अथवा लेतां ॥ २११ ॥ इत्यादिक चर कारज जेते । भानु जोग में करिये तेते ॥ लाभालाभ विचारी कहिये । नहितर मन में जानी रहिये ॥ २१२ ।। विवाह दान इत्यादिक काज । सौम्य चन्द्र योगे सुखसाज ॥ क्रूर कार्य में सूर परधान । पूर्व कथित मन में ते जान ॥ २१३ ॥
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