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का गुणहीन भिक्षु केवल भिक्षावृत्ति से सच्चा भिक्षु नहीं कहा जा पाना
अब सूर्य स्वर में जो जो कार्य करने चाहियें उनका संक्षेप से वर्णन करता हूं । पाठक गण कान लगाकर सुनें-२०४ * विद्या सीखना, विद्या प्रारम्भ करना, ध्यान साधना, मंत्र सिद्ध करना, देवता का आराधन करना, राजा अथवा हकिम को अर्जी देना, वैरी से मुकाबिला करना, वकालत का मुखतार नामा लेना-२०५ - सर्पादि का विष तथा भूतादि का उतारना, रोगी को दवा देना, विघ्न की शान्ति के लिए शान्ति जल डालना, कोढ़ी का इलाज करना और कष्टवाली स्त्री का उपाय करना-२०६
'हाथी, घोड़ा, बग्घी, मोटर, गधा, तख्त, रथ, पालकी, बैलगाड़ी, शस्त्रादि बेचना । शत्र विजय का विचार करना, भोजन करना, स्नान करना, स्त्री को ऋतुदान देना-२०७
नया बही खाता लिखना लिखवाना, व्यापार के कार्य में वृद्धि होना । ये सब कार्य सूर्य स्वर में करने से सब प्रकार से सुख और शांति प्राप्त होते हैं-२०८
राजा शत्र से लड़ाई करने के लिए यदि सूर्य स्वर में जावे तो लड़ाई में "यश को प्राप्त करे तथा विजय प्राप्त करके वापिस अपने घर आवे-२०६
सूर्य स्वर में यदि जहाज़, अगन' बोट, नाव, बजरा इत्यादि नदी अथवा समुद्र में चलावे तो वांछित द्वीप में शीघ्र सुरक्षित पहुंच जावेगा। अपने शत्र के घर में जाकर यदि सूर्य स्वर चलते समय प्रवेश करोगे तो विजय तथा यश की प्राप्ति होगी-२१०
ऊंट, गाय, गधा, घोड़ा इत्यादि पशुओं को बेचना, भट्टा करना, तालाब, नदी, समुद्र आदि में तैरना, किसी को रुपया आदि उधार देना अथवा लेना । ये सब कार्य सूर्य स्वर में करने चाहियें-२११ ४३-सूर्य चर तथा क्रूर कार्यों में सिद्धिदायक है तथा चन्द्र शान्त एवं स्थिर
कार्यों में सिद्धिदायक है । अतः विद्या साधन, ध्यान, मंत्र इत्यादिक शांत - और स्थिर कार्यों के लिये चन्द्र स्वर में तथा क्रूर और चर कार्यों के लिए सूर्य स्वर में करने चाहिये। इसी प्रकार अन्य कार्यों में समझ लेना चाहिये।
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