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जल धारणी के जोग में, प्रश्न करे जो कोष ।
निशानाथ पूरण बहत, तस कारंज सिध होय ॥१६५॥ अर्थ-अब में तत्त्व में प्रश्न सम्बन्धी विचार को कहता हूं सो इस प्रकार मन में निश्चय कर पृच्छक के फल के विषय में उत्तर दें-१३४ .
(१) यदि चन्द्र स्वर में पृथ्वी तत्त्व अथवा जल तत्त्व चलता हो और उस समय कोई कार्य के लिए प्रश्न करे तो कह देना चाहिये कि तुम्हारा कार्य अवश्य सिद्ध होगा-१६५ (दोहा)-पवन अगन' आकाश को, जोग शशि स्वर मांहि । .
- होय प्रश्न करतां थका, तो कारज सिद्धि नांहि ॥१६६॥ क्षिति उदक थिर काजकं, उडुगणपति सुरमांहि । तत्त्व युगल ये जानिये, चर कारज कुं नांहि ॥१६७।। वायु अगन नभ तीन ये, चर कारज परधान ।
तत्त्व हिये में जानिये, उदय होत सुर भान ॥१६८॥ अर्थ-(२) यदि चन्द्र स्वर में वायु तत्त्व, अग्नितत्त्व अथवा आकाश तत्त्व हो और उस समय आकर कोई किसी कार्य के लिए प्रश्न करे तो कह देना चाहिए कि कार्य कदापि सिद्ध न होगा-१६६
(३) स्मरण रखना चाहिये कि चन्द्र स्वर में जल तत्त्व तथा पृथ्वी तत्त्व है । यदि सूर्य स्वर से उदय हो और शशि स्वर से अस्त हो तो जीवों को सदा कल्याणकारी है-३६
पवन के प्रचार को शुक्ल पक्ष में सूर्य के उदय में प्रतिपदा के दिन विज्ञानी सम्यक् प्रकार से यत्नपूर्वक शुभाशुभ दोनों को विचारे-४० ३७–नेष्ठ घटने समर्था राहु-ग्रह-काल-चन्द्र सूर्याद्याः।
क्षिति वरुणौ त्वमृतगतौ समस्त कल्याणदौ ॥४६॥ (ज्ञानार्णवे)
अर्थ-पृथ्वी मंडल (तत्त्व) और वरुण (जल) मंडल ये दोनों पवन अमृतगति (चन्द्र) स्वर में बहें तो राहु, ग्रह, काल, चन्द्र, सूर्य आदि अनिष्ट करने में समर्थ नहीं होते । ये दोनों मंडल समस्त कल्याणों को देने वाले हैं।-४६
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