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"वस्तुका स्वभावही उस
घड़ी अढ़ाई पांच तत, एक एक स्वर मांहि ।
अह निश इदूणविध चलत है, यामें संशय नांहि ॥१७॥ । अर्थ-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पांच तत्त्व हैं । इनमें से
प्रथम के दो अर्थात् पृथ्वी और जल तत्त्वों का स्वामी चन्द्र है और बाकी के तीन-अग्नि, वायु और आकाश तत्त्वों का स्वामी सूर्य है-१०६ • पीला, सफेद, लाल, हरा (नीला)और काला ये पांच वर्ण(रंग)क्रम से पांचों तत्त्वों के जानने चाहियें । अर्थात् पृथ्वी तत्त्व का वर्ण पीला (गले हुए स्वर्ण के समान लाली युक्त पीला) । जल तत्त्व का वर्ण सफेद (चन्द्र समान) । अग्नि तत्त्व का वर्ण लाल (चिंगारी के सम्मान) । वायु तत्त्व का वर्णनीला (हरा) नीला और आकाश तत्त्व का वर्ण काला होता है-११०
जल तत्त्व नीचे की तरफ बहता है तथा नासिका से सोलह अंगुल' बाहर जाता है और उसका आकार आधे चंद्रमा के समान गोल होता है-१११
पृथ्वी तत्त्व सामने चलता है तथा नासिका से बारह अंगुल तक दूर जाता है तथा उसका आकार समचौरस होता है-११२
अग्नि तत्त्व ऊपर की तरफ चलता है तथा नासिका से चार अंगुल तक दूर जाता है और इसका आकार त्रिकोणाकार होता है-११३
वायु तत्त्व तिरछा चलता है तथा नासिका से आठ अंगुल दूर जाता है और इसका ध्वजा के समान चंचल आकार होता है-११४
आकाश तत्त्व नासिका के भीतर ही चलता है अर्थात् दोनों स्वरों (सुखमना स्वर) में चलता है तथा इसका आकार कोई नहीं है-११५ - प्रत्येक स्वर ढाई घड़ी अर्थात् एक घण्टे तक चला करता है और उसमें उक्त पांचों तत्त्व इस रीति से रात-दिन चला करते हैं
पल, वायु तत्त्व बीस पल, और आकाश तत्त्व दस पल । इस प्रकार ५०-४० +३०+२०+१० कुल मिला कर १५० पल हुए । सोही ६० पल की एक घड़ी होने से १५० को ६ ० से भाग देने से २॥घड़ी समय हुआ। २॥घड़ी= १घण्टा होता है । अर्थात् एक मिनिट में २॥ पल होते हैं । ६० विपल =१ पल । (नोट) सब प्रकार की विस्तृत परिभाषाओं को जानने के लिए देखें परिशिष्ट ।
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