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संसारको तृप्त भयंकर फल देने वाली विष वेल हैं।
पृथ्वी तत्त्व ५० पल, जल तत्त्व ४० पल, अग्नि तत्त्व ३० पल, वायु तत्त्वे २० पल, आकाश तत्त्व १० पल । इस प्रकार दोनों नाड़ियां उक्त प्रथम के चार तत्त्वों के साथ प्रकाशित रहती हैं तथा पांचवां आकाश तत्त्व सुषुम्ना नाड़ी के साथ प्रकाशित रहती है-११६-११७ तत्त्वों के द्वारा वर्ष फल जानने की प्रथम रीति
. पृथ्वी तत्त्व (दोहा) पंच तत्त्व सुर में लखे, भिन्न-भिन्न जब कोय ।
काल समय को ज्ञान तस, बरस दिवस नो होय ॥११८॥ प्रथम मेष सक्रांति को, ह प्रवेश जब आय । तबहि तत्त्व' विचारिये, स्वासा थिर ठहराय ॥११॥ डाबा स्वर में होय जो, महीतणो परकास । उत्तम जोग बखानिए, नीको फल है तास ।।१२०॥ परजा को सुख व घनो, समय होय श्रीकार । धाण होय महीयल घणो, चौपद कुं अतिचार ॥१२१।। ईति भीति उपजे नहीं. जन वृद्धि पण थाय ।
इत्यादिक बहुश्रेष्ठ फल, सुख पामे अति राय ॥१२२॥ अर्थ-स्वर में भिन्न-भिन्न पांचों तत्त्वों को देखने का जिस व्यक्ति को ज्ञान हो गया है वह मंडलों में पवन के प्रवेग और निःसरण काल' को देखकर वर्षफल का विचार करे-११८
(१) जिस समय मेष सक्रांति (वैसाख मास-सूर्य मास) लगे उस समय श्वास को स्थिर करके स्वर में चलने वाले तत्त्व को देखना चाहिए --११६
यदि चन्द्र स्वर में पृथ्वी तत्त्व चलता हो तो जान लेना चाहिए कि यह बहुत ही उत्तम योग है जिसका उत्तम फल. होगा। समय बहुत ही श्रेष्ठ होगा-१२०
इस वर्ष प्रजा को बहुत सुख प्राप्त होगा और धन की महान् प्राप्ति होगी । पृथ्वी पर अनाज वहुत उत्पन्न होगा । चौपायों को चारे आदि की कमी न रहेगी । अर्थात् घास, चारा तथा अनाज बहुत होगा-१२१ - रोग और भय का अभाव होने से सब प्रकार की शान्ति रहेगी मनुष्यों की
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