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जो तृष्णा का भेदन करता है वही सच्चा नि । प्राणायाम ध्यान का इतना विस्तार है कि इसको वहस्पति भी कहने मेंसमर्थ नहीं है। इसलिए मैंने यहां पर नाम मात्र-अंति संक्षेप से कहा है। इसका विस्तृत स्वरूप जानने के इच्छुक सम्यग्दृष्टि योगी गुरु के पास से जान कर अपना मनोरथ सिद्ध करे-१०५
प्राणायाम की दस भूमियां हैं उनमें से स्वरोदय प्रथम भूमि है सबसे पहले स्वर प्रकाश का ज्ञान करे फिर उसमें पांच तत्त्वों की पहचान करे-१०६. ___ अब मैं उनका कुछ विस्तार पूर्वक वर्णन करता हूं। आप अपने चित्त को प्रति स्थिर करके ध्यान पूर्वक सुनें । स्वर में जब तत्त्व की पहचान हो जाय तो समझना चाहिये कि स्वरोदय सिद्ध हो गया है-१०७
स्वरों में तत्त्वों की पहचान से लाभ : (अडियल छन्द) दोय सुरा में पांच तत्त्व पहचानिये ।
वरण मान आकार फल जानिये ।। इन विधि तत्त्व लखाव साधतां जो लहे ।
साची बिसवावीस बात नर सो कहे ।। १०८ ॥ अर्थ-दोनों (सूर्य और चन्द्र ) स्वरों में पांच-पांच तत्त्व चलते हैं, उनको पहिचान कर उस तत्त्वों के रंग, परिमारण, आकार, काल, फल आदि को भी विशेष रूप से जानना चाहिये क्योंकि जो मनुष्य इन तत्त्वों की उपर्युक्त प्रकार से भली भांति साधना कर लेता है अर्थात् भलीभांति समझ लेता है, उसकी कही हुई बात अवश्यमेव सत्य होती है-१०८
तत्त्वों की पहचान (दोहा) पृथ्वी जल पावक अनिल, पंचम तत्त्व नभ जान ।
पृथ्वी जल स्वामी शशि, अपर तीन को भान ।।१०६।। पीत श्वेत रातो वरण, हरित श्याम फुनि जान । पंच वरण ये पांच के, अनुक्रम थी पहिचान ।।११०॥ पृथ्वी सन्मुख संचरे, करपल्लद षट् दोय ।
समचतुत्र प्राकार तस, स्वर संगम में होय ।।१११।। ३३-ज्ञानार्णव में कहा है कि
घोणा विवरणमापूर्य किञ्चिदुष्णं पुरन्दरः ।
वहत्यष्टांगुलः स्वस्थः पीतवर्णः शनैः शनैः ॥२४॥ अर्थ-नासिका के छिद्र को भली प्रकार भर कर कुछ उष्णता लिए पाठ अंगुल बाहर निकलता, स्वस्थ, चपलता रहित, मन्द मन्द बहता ऐसा पुरन्द्र (इन्द्र) जिसका स्वामी है ऐसे (चिन्हों से) पृथ्वी मंडल को जानना-२४
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