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मामिन वस्त्र रंगने पर भी सुन्दर नहीं होता। श्वास द्वार से बची हुई हवा से पूर (भर) देना।
२-रेचक-श्वास द्वार से पूरे हुए वायु को प्रश्वास द्वारा बाहर निकालना रेचक कहलाता है। __३-कुम्भक-जिस प्रकार पानी से भरा हुआ घड़ा शांत और स्थिर होता है उसी प्रकार शरीर में वायु भर रखने से वह शांत और निश्चल' होता है तथा शरीर में सब प्राण वायु स्थिर हो जाती है। इस प्रकार पानी से भरे हुए कुम्भ (घड़े) की उपमा से इस प्राणायाम को कुम्भक कहते हैं । इस कुम्भक के भी आठ भेद हैं।
४-शांतिक-ज्योति का प्रकाश करना-५८ ५-समता---ध्येय स्वरूप में सूक्ष्म उपयोग । ६-एकता-आत्मा और गुणों में एकता ७-लीन भाव :-आत्मा के शुद्ध स्वरूप में लीनता-५६
- प्राणायाम का फल (१) पूरक प्राणायाम से शरीर को पुष्टि मिलती है। तथा रोगों की शान्ति होती है।
(२) रेचक प्राणायाम से पेट की व्याधि तथा कफ का नाश होता है ।
(३) कुम्भक प्राणायाम से हृदय कमल' तत्काल विकस्वर होता है, अन्दर की गांठ भेदी जाती है, शरीर में बल की वृद्धि होती है तथा वायु स्थिर रह सकती है।
(४) शांत प्राणायाम से वात, पित्त और कफ अथवा त्रिदोष (सन्निपात) की शान्ति होती है तथा उत्तर एवं अधर प्राणायाम से कुम्भक की स्थिरता होती है।
(दोहा) लीन दशा व्यवहार थी, होत समाधि रूप ।
निहचे थी चेतन यह, होवे शिवपुर भूप ॥ ६० ॥ ___ अर्थ-लीन दशा व्यवहार से समाधि रूप होती है और निश्चय से यह चेतन (आत्मा) मुक्त हो जाता है-६० (दोहा) स्वासा कुं अति थिर करे, ताणे नहीं लगार।
मूलबन्ध". दृढ़ लायके, करे बीज संचार ॥ ६१॥ ११. मूलबन्ध का स्वरूप परिशिष्ट में देखें ।
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