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कषायों का क्षय किए बिना केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। [२५
अर्थ-नाभी के पास कुंडलिनी है और बंकनाल इसके पीछे है मह ही दशम द्वार का मार्ग है । उल्टे मार्ग से इससे कोई लाभ प्राप्त नहीं कर सकता–७४ ।
मुद्रा, बन्ध और प्रासन (चौपाई) मुद्रा पांच बन्ध त्रय" जानो । आसन चौरासी पहचानो ॥ ' तामे आसन युग परधान । मूलासन२३ पद्मासन जान ॥७५ ।। २०-पांच मुद्राएं-खेचरी, भूचरी, चांचरी, अगोचरी, उनमनी । २१-तीन बन्ध-उड्डियान, मूल' बन्ध, जालंधर बन्ध । (देखें परिशिष्ट) २२-चौरासी आसन-(१) सिद्धासन, (२) प्रसिद्ध सिद्धासन, (३) पद्मा
सन, (४) बद्ध पद्मासन, (५) उत्थित पद्मासन, (६) ऊर्ध्व पद्मासन, (७) सुप्त पद्मासन, (८) भद्रासन, (६) स्वस्तिकासन, (१०) योगासन, (११) प्रारणासन, (१२) मुक्तासन, (१३) वज्रासन, (१४) चक्रा
सन, (१५) उत्कटासन इत्यादि-इत्यादि । २३-मूलासन-दोनों ओर के जानु और जंघों के बीच में दोनों पाद तलों को
रखकर स्थिर बैठने को मूलासन कहते हैं । इसका दूसरा नाम स्वस्तिकासन भी है। इस आसन में बायां पैर नीचे रखें और दाहिना पैर
ऊपर ।दोनों हाथ ऊपर नीचे पद्मासन के समान रखें । २४-पद्मासन-पहले बांयी जांघ के ऊपर दाहिने पैर को रखें, फिर बायें पैर
की दाहिनी जांघ पर रखें, दोनों पैरों के मध्य में ऊपरी नीचे रखें, तीर्थंकर की मूर्ति के समान आसन उस समय शरीर स्थिर रहना चाहिए और चित्त में किसी प्रकार का भी उद्वग नहीं होना चाहिए। (Relaxation of body and mind)
__ आसन के अभ्यास से सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, राग-द्वेष आदि द्वन्द्व छूट जाते है।
"शरीर सुखमासनम्” (पातंजल योग सूत्र) अर्थात् “जो स्थिर और सुखदायी है वह आसन है ।''
आसन शरीर को स्वस्थ, हल्का और योग साधना के लिए योग्य
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