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भोगों से विरक्त पुरुष संसार रूपी बन को पार कर लेते हैं।
भ्रष्टांग योग तथा प्राणायाम के भेद
(दोहा) - अष्ट भेद हैं योग के, पंचम प्राणायाम | ताके सप्त प्रकार हैं, सकल सिद्धि के धाम ।। ५६ ।। रेचक पूरक तीसरो, कुम्भक भेद पिछान ।
शांतिक समता एकता, लीन भाव चित्त प्रान ॥ ५७ ॥
अर्थ — पातंजल की दृष्टि से यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम धारणा, ध्यान, समाधि ये आठ भेद योग के हैं । तथा इस हठ योग के आठ अंगों में से प्राणायाम पांचवां भेद है । इस प्राणायाम के सात भेद हैं जो कि सकल प्रकार की सिद्धियों को देने वाले हैं-५६
रेचक, पूरक, कुम्भक, शांति, समता, एकता, लीनभाव ( प्राणायाम के ) इन सात भेदों का स्वरूप समझ कर मन को इनमें लगा देना चाहिए - ५७ प्राणायाम के सात भेदों का स्वरूप
(दोहा) — पूरक पवन गहत सुधी, कुम्भक थिरता तास ।
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रेचक बाहिर संचरे, शांतिक ज्योति प्रकास ।। ५८ ।। समता ध्येय स्वरूप में, तिहां सूक्ष्म उपयोग । गहे एकता गुण विषय, लीन भाव निज योग ॥ ५६ ॥
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८ – यम - हिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, इन पांचों की यमसंज्ञा है ।
६ - योग का दूसरा अंग नियम है— शोच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान ये पांच नियम बतलाये हैं ।
१० - प्रासन - योग का तीसरा अंग आसन है । पातंजल योग शास्त्र में स्थिरता
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तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार विशेष को आसन कहा है। योगमार्ग में प्रवृत्त होने वाले साधक को ध्यान के लिए प्रासन सिद्धि की नितान्त आवश्यकता है। आसन अनेक प्रकार के हैं उनमें से चौरासी प्रधान हैं तथा उनमें से भी योग साधन के लिए दो आसन उपयोगी हैं इन दोनों का वर्णन आगे स्वयं ग्रंथकार करेंगे। वहां से जान लेना । श्रासन जय करने के बाद ध्यान सिद्धि के लिए प्राणायाम आवश्यक है।
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