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जिस में दया की पवित्रता है सही । अर्थ-श्वास को बिल्कुल न खेंचे, उसे प्रति स्थिर करके मूलबन्ध को दृढ़ कर बीज का संचार करे-६१
शरीर में वायु के भेद तथा इसके बीज - (दोहा) वायु पांच- शरीर में, प्राण समान अपान ।
उदान वायु चौथो कह्यो, पंचम अनिल अव्यान ।। ६२ । प्राण हिये फुनि सर्वगत तन में रहत समान । आधार चक्र गति जानिये, तीजो वायु अपान ॥ ६३ ।। उदान वासह कंठ में, संधि गतिए अव्यान। . पंच वायु के बीज फुन, पंच हिये इम आन ।। ६४ ॥ ऐं 4 रौं ब्लौं क्लौं सुधी, पांच बीज परधान ।
इनके गर्भित भेद को, कहत न आवे मान ।। ६५ ।। अर्थ-शरीर में वायु पांच प्रकार की है। प्राण', समान, अपान, उदान तथा अव्यान-६२ -- १-प्राण :-श्वास द्वारा बाहर का बचा हुआ वायु हृदय में रहता है,
लहू में सब प्रकार की चेष्टा कराने वाला शरीर में लघुता देने वाला—प्राण वायु कहलाता है । यह वायु मुख, नथने, नाभि और हृदय में रहता है। शब्द का उच्चार, श्वास, उच्छवास और खांसी अादि का कारण रूप है।
२-समान :-सारी नाभि में रहता है और सारे शरीर में व्यापक रूप से अग्नि के साथ बहत्तर हजार नाड़ियों के छिद्रों में संचरण करता है । खाये और पीये हुए रसों को अच्छी तरह से चलाकर शरीर को पुष्ट बनाता है तथा सब रसों को नाड़ियों में फैला देने वाला वायु समान कहलाता है ।
३-अपान :-कंठ की पिछली नाड़ी, पीठ, गुदा, लिंग, कटि, जंघा, पेट, दो वृषण, साथल और घुटनों में जो रहा हुआ वायु है वह अपान वायु कहलाता है । मल, मूत्र तथा वीर्य को बाहर निकालना इसका काम है-६३
४-उदान :-दो हाथ, दो पग तथा अंगों के जोड़ों में रहने वाला वायु उदान कहलाता है। शरीर को नमाना, मृत्यु करना, शरीर को ऊंचा करना ये तीन इसके मुख्य कर्तव्य हैं।
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