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हेयोपादेय का ज्ञाता ही सम्मष्टि है।
एकस्वर विचार में निर्गुण, सगुण, उदय, अस्त आदि को भी देखना चाहिए, जिससे श्राप सर्व प्रकार की सफलता प्राप्त कर सकते हैं - २३ शुभाशुभ फल
पक्ष तथा तिथि में स्वर विचार
(दोहा) - कृष्ण पक्ष एकम दिने, प्रातः सूरज होय । ताते पक्ष प्रवीण नर, आनन्दकारी जोय ।। २४ ।। शुक्ल पक्ष के आदि दिन, जो शशि स्वर उद्योत । तो ते पक्ष विचारिये, सुखदायक अति होत ॥ २५ ॥
अर्थ — सब पवन प्रवेश काल में प्रर्थात् नासिका में प्रवेश करते समय कार्य करने से पुरुषों के मनोगत विचारे हुए फल की नासिका से बाहर निकलते समय कार्य करने से को करते हैं ॥ ३३ ॥
सर्वेऽपि प्रविशन्त रवि-शशि- मार्गेण वायवः सततम् । विदधति परां सुखास्थां निर्गच्छन्तो विपर्यस्ताम् ॥ ३४ ॥
अर्थ — सब पवन सूर्य, चन्द्र के मार्ग से अर्थात् दाहिने, बायें निरन्तर प्रवेश करते हुए उत्कृष्ट सुख को करते हैं तथा निकलते हुए उत्कृष्ट दुःख को प्रम करते हैं । अर्थात् प्रवेश करते शुभ तथा निःसरण करते अशुभ हैं।
वामेन प्रविशन्तो वरुरण महेन्द्रो समस्त सिद्धिकरौ । इतरेण निःसरन्तौ हुतभुकपवनो विनाशाय ॥ ३५ ॥ ( ज्ञानार्णव प्रकाश २६ श्लो० ३३-३४-३५ ) अर्थ - जल मंडल तथा पृथ्वी मंडल के पवन बांई तरफ प्रवेश करते हों तब कार्य करने से समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाले हैं एवं अग्नि मंडल और वायु मंडल के पवन दाहिनी तरफ निकलते हुए विनाश के करने वाले हैं । इन स्वरों के चार भेदों को इस मंत्र द्वारा समझाते हैं
स्वरों का नाम और गुण
सगुण स्वर
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निर्गुण स्वर | जब स्वर नाकके छेद | जब स्वर नाक के छेद में से बाहर निकले में प्रवेश करे उसे सतब निर्गुण होता है : गुरण स्वर कहते हैं इसमें कोई प्रश्न करे तब जो प्रश्न करे वह तो उसका कार्य सिद्ध अपनी श्राशा पावे न हो :
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प्राप्ति होती हैं । ये पवन अतिशय दुःख से भरे अहित
उदय स्वर
| प्रस्त स्वर
स्वर जब दूसरे | जब स्वर बदलने स्वर से बदल कर को होता है उसे नया चलना शुरू अस्त स्वर कहते होता है उसे उदय | हैं । स्वर कहते हैं ।
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