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मदिन प्रविसंबाही मारमा ही धर्म का सच्चा पाराक होता है ।। हार मुकुट केयूर, चरणं नूपर धुनि बाजे। अद्भुत रूप स्वरूप, निरख मन रम्भा लाजे ॥ लीलायमान गज गामिनी, नित ब्रह्मसुता चित्तध्याइये ।
चिदानन्द तस ध्यान थी, अविचल लीला पाइये ॥२॥ ___ (दोहा) उदधि सुता सुत तास रिपु, वाहन संस्थित बाल ।
बाल जाणी निज दीजिये, वचन विलास रिसाल ॥३॥ . अर्थ-एक हाथ में वीणा तथा एक हाथ में पुस्तक धारण किए हुए ऐसी चन्द्रमुखी, कोमलांगी, मस्तक पर तिलक किए हुए, हार, मुकुट, बाजूबन्ध से सुशोभित शरीर वाली, नूपुरों की ध्वनि सहित चरणों वाली, हाथी के समान चाल वाली, जिसके रूप को देखकर रम्भा, भी लज्जित होती है ऐसे अद्भुत स्वरूप वाली सरस्वती का मैं चिदानन्द ध्यान करता हूं क्योंकि तुम्हारे ध्यान से शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है-२
हे गरुड़ वाहिनी सरस्वती मुझे (चिदानन्द को) आप अपना बालक जानकर सरस रसाला वचन दो अर्थात् मुझे इस स्वरोदय सार की रचना करने की शक्ति प्रदान करो-३ .. ... सिद्ध वन्दना. . (दोहा) अज अविनाशी प्रकल जे, निरंकार निरधार । का निर्मल निर्भय जे सदा, तास भक्ति चित्त धार ॥४॥.....
जन्म जरा जाकुं नहीं, नहीं सोग सन्ताप। सादि अनन्त स्थिति करी, स्थिति बन्धन रुचि काप ॥५॥ लीजे अंश रहित शुचि, चरम . पिण्ड अवगाह । .. एक समय सम श्रेणि ए, अचल थया शिवनाह ।।६।। . . सम अरु विषम पणे करि, गुण पर्याय अनन्त । : एक-एक प्रदेश में शक्ति .. सुजस महन्त ।।७॥ रूपातीत व्यतीत मल, पूर्णानन्दी ईस। । चिदानन्द ताकुं नमंत, विनय सहित निज शीश ॥८॥
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