________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रूप में, अन्वग्भूत्वा,-भावम्,--आस्ते मित्रतापूर्वक | की पूर्णिमा के पश्चात् आने वाले पोष, माष और व्यवहृत होना 4. (कर्म के साथ) पश्चात् ताम् । फाल्गुन के कृष्णपक्ष की नवमी ।
अन्वग्ययो मध्यमलोकपाल:-रघु० २।१६। अन्वष्टक्यम् [अन्वष्टका+यत्] अन्वष्टका के दिन होने अनन्छ (वि) [अनु + अञ्च-क्विप्] पीछे जाने वाला, वाला श्राद्ध या ऐसा ही कोई दूसरा अनुष्ठान ।
पीछा करने वाला, अनूचि पीछे की ओर, पीछे से।। अम्बष्टमविशम् (अव्य०)[प्रा० स०] उत्तर पश्चिम दिशा अन्वयः [अनु++अच्] 1. पीछे जाना, अनुगमन, अनु- की ओर।
गामी, परिजन, सेवकवर्ग--का त्वमेकाकिनी भीरु अन्वहम् (अव्य०) [अनु + अहन्-प्रा० स०] दिन-ब-दिन, निरन्वयजने वने-भट्टि० ५।६६, 2. साहचर्य, मेलजोल, प्रति दिन। संबंध, 3. वाक्य में शब्दों का स्वाभाविक क्रम या | अन्वाल्यानम् अनु+आ+ख्या+ल्युट्]बाद में उल्लेख करना, संबंध, व्याकरण विषयक क्रम या संबंध, तात्पर्याख्या या गिनना, पूर्वोक्त का उल्लेख करते हुए व्याख्या करना। यत्तिमाहः पदार्यान्वयबोधने-सा० द० शब्दों का अन्बाचयः [अनु+आ+चि+अच] 1. प्रधान कार्य का युक्तियुक्त संबंध 4. तात्पर्य, अभिप्राय, प्रयोजन 5. कथन करके गौण कार्य की उक्ति, मुस्य पदार्थ के साप जाति, कुल, वंश-रधूणामन्वयं वक्ष्ये---रघु. ११९, गौण पदार्थ का जोड़ना, 'च' निपात का एक अर्ष१२।६, 6. वंशज, सन्तति, बाद में आने वाली सन्तान- भो भिक्षामट गां चानय-यहां पर भिक्षक के प्रधान ताम्य ऋते अन्वयः-या० ११११७, 7. कार्यकारण का कार्य-(भिक्षार्थ बाहर जाने) के साथ एक गौणकार्य तर्कसंगत संबंध, तर्कसंगत नैरन्तर्य,-जन्माद्यस्य यतोऽ- (गाय का ले आना) भी जोड़ दिया गया है 2. इस न्वयादितरत:--भाग०८, (न्या० में) [हेतुसाध्ययो- प्रकार का स्वयं एक पदार्थ। याप्तिरन्वयः]-भारतीय अनुमितिवाद में साध्य और अन्दाजे (अव्य.) [अन+आजि+] ('उपजेकी भांति हेतु की सतत तथा अपरिवर्त्य सहवर्तिता का वर्णन ।
इसका प्रयोग 'कृ' के साथ होता है) दुर्बल की सहायता सम.--आगत (वि.) आनुवंशिक,-ज्ञः वंशावली
करना, (यह विकल्प से उपसर्ग समझा जाता है) प्रणेता, रघ०६८,-व्यतिरेकः (°को या कम) 1.
कृत्य, या कृत्वा। विधायक और निषेधात्मक प्रतिज्ञा, सहमति और |
अन्याविष्ट (वि०) [अन+आ+दिश+क्त] 1. बाद में वैपरीत्य अर्थात् भिन्नता 2. नियम और अपवाद,
या के अनुसार, कहा हुआ, पुनः काम पर लगाया हुआ -व्याप्तिः (स्त्री)स्वीकारात्मक प्रतिज्ञा या सहमति, 2. घटिया, गौण महत्त्व का। अंगीकारसूचक सामान्यपद ।
अन्वादेशः [अनु+आ+दिश् + घश] एक कथन के पश्चात् मन्बर्ष (वि.) [अनुगतः अर्थम् —प्रा० स०] शब्द की दूसरा कथन, पूर्वोक्त की पुनरुक्ति ।
व्युत्पत्ति के द्वारा ही जिसका अर्थ आसानी से जाना | अन्वाधानम् [अनु+आ+घा+ल्युट] अग्निहोत्र की अग्नि जा सके, भाव के अनुकल, सार्थक-तथैव सोऽभदन्वर्थो में समिघाएँ रखना। राजा प्रकृतिरञ्जनात्-रघु० ४।१२, अन्वर्था तैर्वसुन्धरा अन्वाधिः [अनु+आ+धा+कि] (व्यवहारविधि में) 1. -कि० १६६४ । सम०--प्रहणम् शब्द के अर्थ जमानत, किसी तीसरे व्यक्ति के पास धरोहर या प्रतिको शब्दशः स्वीकार करना, (विप० रूढ़),-संज्ञा भूति जमा करना जिससे कि समय पर वह यथार्थ 1. उपयुक्त नाम, एक पारिभाषिक नाम जो अपना स्वामी को सौंपी जा सके 2. दूसरी धरोहर 3. अनवरत अर्थ स्वयं प्रकट करता है, 2. यथार्थ नाम जिसका चिन्ता, खेद, पश्चात्ताप । अर्थ स्पष्ट है।
अन्वाधेयम्-यकम् [अनु+आ+धा+यत् स्वार्थे कन्च ] सम्वकिरणम् [अनु + अव+क+ल्युट्] क्रमपूर्वक चारों एक प्रकार का स्त्री-धन जो विवाह के पश्चात् पितओर बखेरना ।
कुल या पतिकुल की ओर से या उसके अपने संबंधियों मालपसर्गः [अनु + अव+-सृज्+घञ] 1. शिथिल करना | की ओर से उपहार स्वरूप दिया जाय--विवाहात्परतो
2. इच्छानुसार व्यवहार करने देना, कामचागनुज्ञा, 3. ! यच्च लब्धं भर्तृकुलात्स्त्रिया, अन्वाधेयं तु तद्रव्यं स्वेच्छाचारिता।
लब्ध पितृ (बंधु) कुलात्तथा। भन्दवसित [अनु-+-अव+सो+क्त (वि.) संयुक्त, संबद्ध, । अन्वारम्भः-भणम् [अनु+आ+र+घा, ल्युट् वा बंधा हुआ।
मुम् च स्पर्श, संपर्क, विशेषतया यजमान (यज्ञका मन्बबायः [अनु+अव+अय्+घञ] जाति, कुल, बंश । अनुष्ठाता) को पुनीत संस्कार के सुफल का अधिकारी मान्यवेक्षा [ अनु +अव+ ईक्ष् +अड+टाप् ] लिहाज बनाने के लिए स्पर्श करना । विचार।
| अग्वारोहणम् [अनु+आ+रुह.--ल्युट] स्त्री का अपने पनि अत्यन्टका अनुगता अष्टकाम-प्रा० स०] मार्गशीर्ष मास । के शव के साथ चिता पर बैठना ।
For Private and Personal Use Only