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वो में से (पुरुष या पदार्थ) एक, दोनों में से कोई सा [ अवसर पर, किसी दूसरे मामले में अन्यदा भूषणं एक (संब० के साथ), संतः परीक्ष्यान्यतरद्भजन्ते- पुंसां क्षमा लज्जव योषिताम् शि० २।४४, रघु० मालवि० १२, अन्यतरस्याम् (°रा का अधि० ए० ।। १११७३, 2. एक बार, एक समय पर, एक अवसर पर, 4.) किसी तरह, दोनों तरह, इच्छानुरूप।
3. किसी समय। मन्यतरतः (क्रि० वि०) [अन्यतर+तसिल्] दो में से एक | अम्यदीय (वि.) [अन्यदा+छ] 1. किसी दूसरे से संबंध और।
रखने वाला 2. दूसरे में रहने वाला। मन्यतरेषः (अव्य०) [अन्यतरस्मिन्नहनि-अन्यतर+एद्युः | अन्यहि (अव्य०) [अन्य +हिल्] किसी दूसरे समय (=
नि०] दो में से किसी एक दिन, एक दिन, दूसरे दिन। अन्यदा)। भन्यतः (अध्य.) [अन्य+तसिल्] 1. दूसरे से 2. एक | अन्यावृक्ष-श् --श (वि०) [अन्य इव पश्यति--अन्यदृश्
ओर, मन्यतः अन्यतः, एकतः-अन्यतः—एक ओर | +क्स, क्विन्, कञ वा आत्वम् च] परिवर्तित, असा
दूसरी ओर, तपनमण्डलदीपितमेकतः सततनैश- धारण, अनोखा। तमोवृतमन्यतः-कि० ५/२, 3. किसी दूसरे कारण या
अन्याय (वि.) [न० ब०] न्यायरहित, अनुपयुक्त,-यः प्रयोजन से।
1. कोई न्याय रहित या अवैधकृत्य--दे० 'न्याय', मन्यत्र (अध्य०) [अन्य+त्रल् (प्रायः = अन्यस्मिन्- अन्यायन अन्याय के साथ, अनुचित ढंग से 2. न्याय
संज्ञा या विशेषण के बल से) 1, और जगह, दूसरे स्थान का अभाव, औचित्य का अभाव 3. अनियमितता । पर 2. किसी दूसरे अवसर पर 3. सिवाय, के बिना | अन्यायिन् (वि.) [3. साय+-णिनि] न्यायरहित, अनुचित । 4. अन्यथा, दूसरी अवस्था में ।
अन्याम्य (वि.) [न० त०] 1. न्याय रहित, अवैध 2. अनुअन्यथा (अब्ध०) [अन्य+थाल्] 1. वरना, दूसरी रीति
चित, अशोभनीय 3. अप्रामाणिक। से, भिन्न तरीके से यदभावि न तद्भावि भावि चेन्न
| अन्यून (वि.) [न० त०] दोषरहित, त्रुटिहीन, पूर्ण, समस्त तदन्यथा-हि० १, अन्यथा-अन्यथा एक प्रकार से
सकल,- अधिक न त्रुटिपूर्ण न आवश्यकता से अधिक । दूसरे ढंग से, अन्यथा दूसरी तरह करना, परिवर्तन
सम०–अंग (वि०) निर्दोष अंगों वाला। करना, बदलना, बिगाड़ना, मिथ्या करना त्वया
अन्येयुः (अव्य०) [अन्य+एद्युः नि०] 1. दूसरे दिन, अगले कदाचिदपि मम वचनं नान्यथाकृतम् पंच०४, 2. नहीं
दिन, अन्येधुरात्मानुचरस्य भावं जिज्ञासमाना-रघु० तो, बरना, इसके विपरीत-व्यक्तं नास्ति कथमन्यथा २०२६, 2. एक दिन, एक बार । वासंत्यपि तां न पश्येत-उत्तर० ३, 3. इसके विपरीत अन्योन्य (वि.) [अन्य-कर्मव्यतिहारे द्वित्वम्, पूर्वपदे 4. मिथ्यापन से, मूठपने से--किमन्यथा भट्टिनी मया सुश्च एक दूसरे को, परस्पर (सर्वनाम की भांति) विज्ञापितपूर्वा-विक्रम० २, 5. गलती से, भूल से, प्रायः समस्त पदों में, कलहः पारस्परिक झगड़ा, इसी बरे ढंग से जैसा कि अन्यथा सिद्ध दे० नीचे। सम० प्रकार °घातः;--क्यम् (अव्य.) आपस में। सम० -अनुपपत्तिः (स्त्री०)दे० अर्थापत्ति,--कारः परिवर्तन, -अभावः पारस्परिक सत्ता का न होना, अभाव के दो अदल बदल,(-कारम्) [क्रि.वि.] भिन्न तरीके से, प्रकारों में से एक, ('भेद' का समानार्थक),---आभय भिन्न ढंग से-पा० ३।४।२७,-यातिः (स्त्री) (वि.) आपस में एक दूसरे पर निर्भर,(-यः) आपस शक्ति को गलत अवधारणा, सामान्य रूप से (दर्शन- में या बदले की निर्भरता, कार्यकारण का (न्याय में) शास्त्र में) मिथ्या अवधारणा,-भावः अदलबदल, इतरेतर संबंध,-उक्तिः (स्त्री०) वार्तालाप,-भेवः परिवर्तन, भिन्नता,-वादिन् (वि.) भिन्न रूप से पारस्परिक द्वेष या शत्रुता,-विभागः साझीदारों द्वारा या मिथ्या बोलने वाला, (विधि में) अपलापी साक्षी रिकथ का.पारस्परिक विभाजन (बिना किसी और
पति (वि०) 1. परिवर्तित 2. बदला हुआ 3. भावा. पक्ष के सम्मिलित हुए),-वृत्तिः (स्त्री०) किसी विष्ट, सबल संवेगों से विक्षुब्ध,-मेष०३,-सिस वस्तु का एक दूसरे पर पारस्परिक प्रभाव,-व्यतिकरः, (वि.) जो मिथ्या ढंग से प्रदर्शित या प्रमाणित किया - संश्रयः इतरेतर क्रिया या प्रभाव, कार्य कारण का गया हो, (न्याय में) उस कारण को कहते हैं जो सत्य पारस्परिक संबंध। न हो, तथा जो केवल मात्र आकस्मिक एवं दूरगामी अन्वक्ष (वि.) [अनुगतः अक्षम् इन्द्रियम्--ग. स.] परिस्थितियों का उल्लेख करे,-सिबम,-सिद्धिः 1. दृश्य 2. तुरन्त बाद में आने वाला,-सम् (अव्य.) (स्त्री०) मिथ्या प्रदर्शन, अनावश्यक कारण, आक- __ 1. बाद में, पश्चात् 2. तुरंत बाद में, सामने, सीधे-- स्मिक या केवल मात्र सहवर्ती परिस्थिति-भाषा. या० ३१२१ ।
प०१६, स्तोत्रम्-व्यंग्योक्ति, ताना, व्यंग्य। अन्वर (अव्य.) [अनु+अञ्च+क्विप् नपुं० ए.व.] 1. अन्यदा (अव्य.) [अन्य+वा] 1. किसी दूसरे समय, दूसरे । बाद में, 2. पीछे से 3. मैत्रीभाव से व्यवहृत, अनुकूल
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