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समीचीन-धर्मशास्त्र _तीसरे गेरुसोप्पे के समन्तभद्र थे, जिनका उल्लेख ताल्लुका कोप्प जि० करके एडेहल्लि जैनवसतिसे मिले हुए चार ताम्र शासनोंमें पाया जाता है । इन ताम्रशासनोंमें आपको 'गेरु सोप्पे-समन्तभद्र-देव' लिखा है। पहला ताम्रशासन आपके ही समयका-शक सं०१३५५ का-लिखा हुआ है और शेष
आपके प्रशिष्य, अथवा आपके शिष्य गुणभद्रके शिष्य.वीरसेनके समयादिकसे सम्बन्ध रखते है ।
चौथे अभिनव समन्तभद्र'के नामसे नामांकित थे। इन अभिनव समन्तभद्र मुनिके उपदेशसे योजन-श्रेष्ठिके बनवाये हुए नेमीश्वर चैत्यालयके सामने कांसीका एक मानस्तंभ स्थापित हुआथा,जिसका उल्लेख शिमोगा जिलान्तर्गत सागर तल्लुकेके शिलालेख नं० ५५ में मिलता है । यह शिलालेख तुलु, कोंकण आदि देशोंके राजा देवरायके समयका है और इसलिए मि लेविम राइस साहबने इसे ई. सन् १५६० के करीबका बतलाया है। इससे अभिनव समंतभद्र किस समयके विद्वान थे यह सहजहीमें मालूम हो जाता है।
पाँचवें एक समन्तभद्र भट्टारक थे, जिन्हें जैनसिद्धान्तभास्करद्वारा प्रकाशित सेनगणकी पट्टावलीमें, 'अभिनव सोमसेन'
X दक्षिण भारतका यह एक खास स्थान है जिसे क्षेमपुर भी कहते हैं और जिसका विशेष वर्णन सागर ताल्लुके के ५५ वें मिला लेखमें पाया जाता है । प्रसिद्ध 'गेरुसोप्पे-प्रपात' Water fall ) भी इसी स्थानके नामसे नामांकित है। देखो E. C., VIII की भूमिका। ___ * देखो, सन् १९०१ में मुद्रित हुई, 'एपिग्रेफिया कर्णाटिका ( Epigraphia Carnatica ) की जिल्द छठीमें, कोप्प ताल्लुकेके लेख नं० २१ २२, २३, २४ ।
+ पहले २१ नंबरके ताम्रशासनमें 'गेरुसोप्पेय' ऐसा पाठ दिया है। * देखो, ‘एपिग्रेफिया कर्णाटिका', जिल्द आठवीं ।