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प्रस्तावना
किया हो और इसलिये जिनकी जाँचकी इस समय जरूरत हो । 'क्षुत्पिपासा' नामक मूल छठे पद्य की विस्तृत जाँच 'नया सन्देह' शीर्षकके नीचे आ ही चुकी है । अस्तु । ___ यह तो हुई ग्रन्थ की उन प्रतियोंके पद्योंकी जाँच जो सटीक प्रतिकी तरह डेढसौ श्लोक संख्याको लिये हुए हैं, अब दूसरी उन प्रतियोंको भी लीजिये जिनमें ग्रन्थकी श्लोकसंख्या कुछ न्यूनाधिकरू पसे पाई जाती है।
- अधिक पद्योंवाली प्रतियाँ ग्रन्थकी हस्तलिखित प्रतियोम, यद्यपि, ऐसी कोई भी उल्लेखयोग्य प्रति अभी तक मेरे देखने में नहीं आई जिसमें श्लोकोंकी संख्या डेढसौसे कम हो; परन्तु आराके 'जैनसिद्धान्तभवन' में ग्रन्थको ऐसी कितनी ही पुरानी प्रतियाँ ताड़पत्रों पर ज़रूर मौजूद हैं जिनमें श्लाक-संख्या, परस्पर कमती-बढ़ती होते हुए भी, डंढमोसे अधिक पाई जाती है । इन प्रतियोमस दो मूल प्रतियोंका जाँचने और साथ ही दो कनड़ी टीकावाली प्रतियों परसे उन्हें मिलानका मुझे अवसर मिला है, और उस जाँचसे कितनी ही ऐसी बातें मालूम हुई हैं जिन्हें ग्रन्थके पद्योंकी जाँचके इस अवसर पर प्रकट कर देना जरूरी मालूम होता है--विना उनके प्रकट किये यह जांच अधूरी ही रहंगी। अतः पाठकोंकी अनुभववृद्धिक लिये यहाँ उस जाँचका कुछ सार दिया जाता है
(१) भवनकी मुद्रित सूची में रत्नकरण्डश्रावकाचारकी जिम प्रतिका नम्बर ६३४ दिया है वह मूल प्रति है और उसमें ग्रन्थके पद्योंकी संख्या १६० दी है-अर्थात् ग्रन्थकी प्रभाचन्द्रीय संस्कृतटीकावाली प्रतिसे अथवा डेढसौ श्लोकों वाली अन्यान्य मुद्रितअमुद्रित प्रतियोंसे उसमें ४० पद्य अधिक पाये जाते हैं। वे ४० पद्य, अपने-अपने स्थानकी सूचनाके साथ, इस प्रकार हैं