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पंचम अध्ययन
शिक्षाव्रतोंके नाम देशाराशिकं वा सामयिक प्रोपधोपवासो वा । वैग्यावत्यं शिक्षाप्रतानि चत्वारि शिष्टानि ॥१॥११॥ ___ 'देशावकाशिक, मामायिक, प्रोपधोपवास तथा वैयावृत्त्य, ये चार शिक्षाव्रत ( व्रतवरागीयों-द्वार। ) बतलाए गए हैं।' ____ व्यारया-शिक्षाव्रतोंके जिन चार भेदोंका यहाँ नामोल्लेख है उनमें 'देशावकाशिक' नाम सा है जिसे तत्त्वार्थ-सूत्रकारने 'देशविरति' के नामसे गुणव्रतीम ग्रहण किया है । और 'वैयावृत्य' नाम एसा है जिसे मूत्रकारने 'अतिथिसंविभाग' नामसे उल्लत्रित किया है । वैय्यावृत्यमें अतिथिसंविभागकी अपेक्षा जो विशिष्टता है उसे आगे स्पष्ट किया जायगा।
देशावकाशिकल-स्वरूप देशावकाशिकं स्यात्काल-परिच्छेदनेन देशस्य । प्रत्यहमणुव्रतानां प्रतिसंहारो विशालस्य ॥२॥२॥ ___' (दिग्द्रतमें ग्रहण किये हुए ) विशाल देशका-विस्तृत क्षेत्रमर्यादाका-कालकी मर्यादाको लिए हुए जो प्रतिदिन संकोच करना-घटाना है वह अणु-व्रतधारी श्रावकोंका देशावकाशिकदेशनिवृत्तिपरक-व्रत है।'
व्याख्या-इस व्रतमें दो बातें खास तौरसे ध्यानमें लेने योग्य हैं-एक तो यह कि यह व्रत कालकी मर्यादाको लिए हुए प्रति दिन ग्रहण किया जाता है अथवा इसमें प्रतिदिन नयापन लाया जाता है; जब कि दिव्रत प्रायः एक वार ग्रहण किया जाता है