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कारिका ६६-६७] सामायिक-व्रत-स्वरूप
१३५ ___ व्याख्या-इन अतिचारोंके द्वारा देशावकाशिकब्रतकी सीमाके बाह्यस्थित देशोंसे सम्बन्ध-विच्छेदकी बातको-उसके प्रकारोंको -स्पष्ट करते हुए अन्तिम सीमाके रूपमें निर्दिष्ट किया गया है । यदि कोई दूसरा मानव इस व्रतके व्रतीकी इच्छा तथा प्रेरणाके बिना ही उसकी किसी चीज़को, उसके कारखानेके लेबिल लगे मालको, उसके शब्दोंको (रिकार्ड रूपमें ) अथवा उसके किसी चित्र या आकृति-विशेषको व्रतसीमाके बाह्यस्थित देशको भेजता है तो उससे इस व्रतका व्रती किसी दोषका भागी नहीं होता। इसी तरह सीमाबाह्य स्थित देशका कोई पदार्थ यदि इस व्रतीकी इच्छा तथा प्रेरणाके विना ही स्वतन्त्र रूपमें वहाँसे लाया जाकर इस व्रतीको अपनी क्षेत्रमर्यादाके भीतर प्राप्त होता है तो उससे भी व्रतको दोष नहीं लगता। हाँ, जानबूझकर वह ऐसे चित्रपटों, सिनेमाके पर्दो तथा चलचित्रोंको नहीं देखेगा और न ऐसे गायनों आदिके ब्राडकास्टों तथा रिका को ही रेडियो आदि द्वारा सुनेगा जो उसकी क्षेत्रमर्यादासे बाहरके चेतन प्राणियोंसे सीधा सम्बन्ध रखते हों और जिससे उनके प्रति रागद्वेषकी उत्पत्ति तथा हिंसादिककी प्रवृत्तिका सम्भव हो सके ।
सामायिक-व्रत-स्वरूप आसमयमुक्ति मुक्तं पंचाऽघानामशेषभावेन । सर्वत्र च सामयिकाः सामयिकं नाम शंसन्ति ।।७॥६७॥ ___(विवक्षित ) समयकी--केशबन्धनादिरूपसे गृहीत प्राचारकीमुक्तिपर्यन्त-उसे तोड़नेकी अवधि तक-जो हिंसादि पाँच पापोंका पूर्णरूपसे सर्वत्र-देशावकाशिकवतकी क्षेत्र-मर्यादाके भीतर और बाहर सब क्षेत्रोंकी अपेक्षा त्याग करना है उसका नाम आगमके ज्ञाता 'सामायिक' बतलाते हैं।'