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कारिका ६४-६५ ] देशाव० - द्वारा महाव्रत-साधन
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वर्ष, ऋतु, अयन, मास, चतुर्मास, पक्ष, नक्षत्र, इन्हें तथा ( चकार या उपलक्षणसे ) इन्हीं - जैसे दूसरे दिन, रात, अर्ध-दिनरात, घड़ी घंटादि समय-निर्देशात्मक परिमारणोंको विज्ञजन (गरणधरादिक महामुनीश्वर ) देशावकाशिकव्रतकी काल-विषयक मर्यादाएँ कहते हैं ।'
व्या वर्ष प्राय:बारह मासका और कभी-कभी मलमाससे युक्त होने पर तेरह मासका भी होता है। ऋतुएँ प्रायः छह होती हैं - वर्षाऋतु, शरद, हेमन्त, शिशिर, बसन्त, ग्रीष्म और उनमें प्रत्येकका समय श्रावण से प्रारम्भ करके दो दो मासका है । अयनके दो भेद हैं-दक्षिणायन और उत्तरायण, जो सूर्यके दक्षिण तथा उत्तरागमनकी दृष्टिको लिये हुए हैं और इनमें से प्रत्येक छः मासका होता है । दक्षिणायनका प्रारम्भ प्रायः श्रावण मास से और उत्तरायणका माघमाससे होता है— संक्रान्तिकी दृष्टि से भी इनका भेद किया जाता है । मास श्रावणादिक (अथवा जनवरी आदि) बारह हैं और वे प्राय: तीस-तीस दिनके होते हैं । चतुर्मास ( चौमास) का प्रारम्भ श्रावणसे होता है । पक्षके कृष्ण और शुक्ल ऐसे दो भेद हैं, जिनमें से प्रत्येक प्राय: पन्द्रह दिनका होता है । नक्षत्र अश्विनी भरणी आदि अभिजित सहित अट्ठाईस हैं। इनमें से प्रत्येकका जो उदयास्तमध्यवर्ती समय है वही यहाँ कालावधिके रूपमें परिगृहीत है । इन्हीं जैसी दूसरी कालमर्यादाएँ हैं। दिन रात अर्ध दिनरात घड़ी घण्टा, प्रहर तथा
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मिनिटादिक ।
देशावकाशिक - द्वारा महाव्रत-साधन
सीमान्तानां परतः स्थूलैतर- पंचपाप - संत्यागात् ।
देशावकाशिकेन च महाव्रतानि प्रसाध्यन्ते ॥ ५ ॥ ६५ ॥