Book Title: Samichin Dharmshastra
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 309
________________ समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०५ वैयावृत्त्यके चार भेद आहारौषधयोरप्युपकरणावासयोश्च दानेन । वैयावृत्यं ब्रुवते, चतुरात्मत्वेन चतुरस्राः ॥२७॥११७॥ 'आहार, औषध, उपकरण ( पीछी, कमंडलु. शास्त्रादि ) और आवास (वस्तिकादि) इन चार प्रकारके दानोंसे वैयावृत्त्यको विज्ञजन चार प्रकारका बतलाते हैं । अर्थात् आहारदान, औषधिदान, उपकरणदान और आवासदान, ये वैय्यावृत्त्यके मुख्य चार भेद हैं।' ___ व्याख्या-लोकमें यद्यपि आहारदान, औषधदान, विद्यादान और अभयदान, ऐसे चार दान अधिक प्रसिद्ध हैं; परन्तु जिन तपस्वियोंको मुख्यतः लक्ष्य करके यहाँ वैय्यावृत्यके रूपमें दानकी व्यवस्था की गई है उनके लिये ये ही चार दान उपयुक्त हैं। उपकरणदानमें शास्त्रका दान आाजानेसे विद्यादान सहज ही बन जाता है और भयको वे पहलेसे ही जीते हुए होते हैं, उसमें जो कुछ कसर रहती है वह प्रायः आवासदानसे पूरी हो जाती है। वैयावृत्त्यके दृष्टान्त * श्रीपेण-वृषभसेने, कौण्डेशः शूकरश्च दृष्टान्ताः । ते चतुर्विकल्पस्य मन्तव्याः ॥२८॥११८॥ (आहारदान, औषधदान, उपकरणदान और आवासदानके भेदसे) चार विकल्परूप वैयावृत्यके (क्रमशः) श्रीषेण, वृषभसेना, कौण्डेश और शूकर ये चार दृष्टान्त जानने चाहिये।' व्याख्या-आहारदानमें श्रीपेणकी, औषधदानमें वृषभसेनाकी, उपकरणदानमें कौण्डेशकी और आवासदानमें शूकरकी कथाएँ प्रसिद्ध है । ये कथाएँ अनेक ग्रन्थों में पाई जाती हैं, यहाँ इनके उदाहृत करनेकी कुछ जरूरत नहीं समझी गई। * यह कारिका जिस स्थितिमें स्थित है उसका विशेष विचार एवं ऊहापोह प्रस्तावनामें किया जा रहा है, वहींसे उसको जानना चाहिये।

Loading...

Page Navigation
1 ... 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337