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समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०५ 'सेवा-कृषि-वाणिज्य-प्रमुखादारम्भतो व्युपारमति' इत्यादि कारिका नं० १४४ से प्रकट है । और 'सूना' वधके स्थानों-ठिकानोंका नाम है और वे खंडिनी (ओखली), पेषिणी ( चक्की), चुल्ली ( चौका चूल्हा ), उदकुम्भी (जलघटी) तथा प्रमार्जनी (बोहारिका) के नामसे पाँच प्रसिद्ध हैं । इससे स्पष्ट है कि वे पात्र सेवा-कृषि-वाणिज्यादि कार्योंसे ही रहित न होने चाहियें बल्कि अोखली, चक्की, चूल्ही, पानी भर कर रखना तथा बुहारी देनेजैसे कामोंको करनेवाले भी न होने चाहिये । ऐसे पात्र प्रायः मुनि तथा ग्यारहवीं प्रतिमाके धारक क्षुल्लक-ऐलक हो सकते हैं।
अतिथि पूजादि-फल गहकर्मणापि निचितं कर्म विमाष्टिं खलु गहविमुक्तानाम् । अतिथीनां प्रतिपूजा रुधिरमलं धारते वारि ॥२४॥११४॥ _ 'जैसे जल रुधिरको धो डालता है वैसे ही गृहत्यागी अतिथियों ( साधुजनों) की दानादिरूपसे की गई पूजा-भक्ति भी घरके पंचसूनांदि सावद्य-कार्योंके द्वारा संचित एवं पुष्ट हुए पापकर्मको निश्चयसे दूर कर देती है।'
व्याख्या-यहाँ 'गृहविमुक्तानां अतिथीनां' पदोंके द्वारा वे ही गृहत्यागी साधुजन विवक्षित हैं जो पिछली कारिकाओंके अनुसार 'तपोधन' है-तपस्वीके उस लक्षणसे युक्त हैं जिसे १० वीं कारिकामें निर्दिष्ट किया गया है, 'गुणनिधि' हैं-सम्यग्दर्शनादि गुणोंकी खान हैं—संयमी है-इन्द्रियसंयम-प्राणिसंयमसे सम्पन्न एवं कषायोंका दमन किये हुए है और पंचसूना तथा आरम्भसे विमुक्त है । ऐसे सन्तजनोंकी शुद्ध-वैयावृत्ति निःसन्देह गृहस्थोंके पुखीभूत पाप-मलको धो डालनेमें समर्थ है । प्रत्युत इसके, जो + खंडनी पेषणी चुल्ली उदकुम्भी प्रमार्जनी। पंचसूना गृहस्थस्य तेन मोक्षं न गच्छति ॥
-टीकामें प्रभाचन्द्र-द्वारा उद्धृत