Book Title: Samichin Dharmshastra
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 314
________________ कारिका १२१ ] वैयावृत्त्य-लक्षण १५६ पत्रादिक पर रक्खी हुई देय वस्तु देना, अनादरत्व - दानादिकमें अनादरका भाव होना —- अस्मरणत्व - दानादिकी विधिमें भूलका हो जाना और मत्सरत्व - अन्य दातारों तथा पूजादिकी प्रशंसाको सहन न करते हुए ईर्षाभावसे दानका देना तथा पूजनादिका करना- ये निश्चयसे वैयावृत्त्यके पाँच अतिचार (दोष) कहे जाते हैं । ' --- " व्याख्या—यहाँ 'हरितपिधाननिधाने' पदमें प्रयुक्त हुआ 'हरित' शब्द सचित्त (सजीव) अर्थका वाचक है - मात्र हरियाई अथवा हरे रंग पदार्थका वाचक वह नहीं है, और इसलिये इस पढ़के द्वारा जब सचित्त वस्तुसे ढके हुए तथा सचित्त वस्तुपर रक्खे हुए चित्त पदार्थ के दानको दोपरूप बतलाया है तब इससे यह स्पष्ट जाना जाता है कि अनगार मुनियों तथा अन्य सचित्तत्यागी संयमियोंको आहारादिकके दानमें सचित्त वस्तुओंका देना निषिद्ध है, न कि अचित्त वस्तुओंका - भले ही वे संस्कार-द्वारा अचित्त क्यों न हुई हों; जैसे हरी तोरीका शाक और गन्ने या सन्तरेका रस । इस प्रकार श्रीस्वामिसमन्तभद्राचार्य विरचित समीचीन धर्मशास्त्र अपरनाम रत्नकरण्ड - उपासकाध्ययनमें शिक्षाव्रतोंका वर्णन नामका पाँचवा अध्ययन समाप्त हुआ || ३ ||

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