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समीचीन धर्मशास्त्र
सामायिकव्रतके प्रतिचार
वाक्कायमानसानां दुःप्रणिधानान्यनादराऽस्मरणे । सामयिकस्याऽतिगमा व्यज्यन्ते पञ्च भावेन || १५ || १०५ ||
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[श्र० ५
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वचनका दुःप्रणिधान ( दुष्ट असत् या अन्यथा प्रयोग अथवा परिणमन ), कायका दुःप्रणिधान, मनका दुःप्रणिधान, अनादर ( अनुत्साह) और अस्मरण ( अनैकाग्रता ), ये वस्तुतः अथवा परमार्थसे सामायिकव्रत के पाँच प्रतीचार हैं ।'
व्याख्या -- सामायिकव्रतका अनुष्ठान मन-वचन-कायको ठीक वशमें रखकर बड़ी सावधानीके साथ उत्साह तथा एकाग्रतापूर्वक किया जाता है, फिर भी दैवयोग से क्रोधादि किसी कपायके आवेश वश यदि मन-वचन-काय में से किसीका भी खोटा अनुचित या अन्यथा प्रयोग बन जाय अथवा वैसा परिणमन हो जाय, उत्साह गिर जाय या अपने विषय में एकाग्रता स्थिर न रह सके तो वह इस व्रत के लिये दोषरूप हो जायगा । उदाहरण के तौर पर एक मनुष्य मौनसे सामायिक में स्थित है, उसके सामने एकदम कोई भयानक जन्तु सांप, बिच्छू व्याघ्रादि आजाए और उसे देखते ही उसके मुँ हसे कोई शब्द निकल पड़े, शरीर के रोंगटे खड़े हो जायँ, आसन डोल जाय, मनमें भयका संचार होने लगे और उस जन्तुके प्रति द्वेषकी कुछ भावना जागृत हो उठे अथवा अनिष्टसंयोगज नामका ध्यान कुछ क्षण के लिये अपना आसन जमा बैठे तो यह सब उस व्रतीके लिये दोषरूप होगा । प्रोषधोपवास- लक्षण
पर्व यष्टम्यां च ज्ञातव्यः प्रोषधोपवासस्तु । चतुरभ्यवहार्याणां प्रत्याख्यानं सदिच्छाभिः ॥ १६ ॥१०६॥