Book Title: Samichin Dharmshastra
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 285
________________ १३० समीचीन धर्मशास्त्र [ श्र० ४ I में दिये गये हैं और अपने विषयके साथ बहुत ही संगत जान पड़ते हैं । तत्त्वार्थ सूत्र में दिये गये अतिचारोंका रूप है - सचिन्ता - हार, सचित्त सम्बन्धाहार, सचित्त सम्मिश्राहार, अभिषवाहार, दुः पक्काहार | ये सब एकमात्र भोजनसे सम्बन्ध रखते हैं, जब कि भोगोपभोग परिमाणव्रतका विषय एकमात्र भोजन न होकर पाँचों इन्द्रियोंके विषयांसे सम्बन्ध रखता है और वे विषय जड तथा चेतन दोनों प्रकार के होते हैं । ऐसी स्थिति में तत्त्वार्थसूत्रगत अतिचार भोगोपभोग - परिमाणकी व्यापकदृष्टिको लिए हुए न होकर किसी दूसरी ही दृष्टिसे निबद्ध हुए जान पड़ते हैं। इस सम्बन्धमें एक बात और प्रकट कर देने की है और वह यह है कि सूत्रकारने इस व्रतको शिक्षाव्रतों में ग्रहण किया है जबकि स्वामी समन्तभद्र इसे गुणव्रतोंमें ले रहे हैं और सूत्रकारके पूर्ववर्ती कुन्दकुन्द आचार्य ने भी इसे गुणव्रतों में ग्रहण किया है, जैसाकि रित्त पाहुडकी निम्न गाथासे प्रकट है : दिसविदिसमा पढमं अरणत्थदंडस वज्जणं बिदियं । भोगोपभोगपरिमा इयमेव गुणव्वया तिणि ॥ २५ ॥ इससे भोगोपभोगपरिमाणव्रतकी गुणव्रतों में गणना अति • प्राचीन सिद्ध होती है । इस प्रकार स्वामी समन्तभद्राचार्य - विरचित समीचीन - धर्मशास्त्र रत्नकरण्ड- उपासकाध्ययनमें अपरनाम गुणव्रतोंका वर्णन नामका चौथा अध्ययन समाप्त हुआ ॥ ४ ॥

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