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समीचीन-धर्मशास्त्र
यम-नियम-लक्षण नियमः यमश्च विहितौ द्वधा भोगोपभोगसंहारात् । नियमो परिमितकालो यावज्जीव यमो ध्रियते ॥२१॥८७॥ _भोगोपभोगका परिमाण दो प्रकारका होनेसे नियम और यम ये दो भेद व्यवस्थित हुए हैं। जो परिमाण परमित कालके लिए ग्रहण किया जाता है उसे 'नियम' कहते है और जो जीवनपर्यन्तके लिये धारण किया जाता है वह 'यम' कहलाता है।'
व्याख्या-यहाँ 'यम' तथा 'नियम' का अच्छा मुस्पष्ट लक्षण निर्दिष्ट हुआ है । यम-नियमका सम्बन्ध एकमात्र भोगोपभोग परिमाणव्रतसे ही नहीं है किन्तु दूसरे व्रतोंसे भी उनका सम्बन्ध है और इसीलिये यह व्यापक लक्षण सर्वत्र घटित होता है ।
नियमके व्यवस्थित रूपका संसूचन भोजन-वाहन-शयन-स्नान-पवित्राङ्ग-राग-कुसुमेषु । ताम्बूल-वसन-भूषण-मन्मथ-संगीत-गीतेषु ॥ २२ ॥ ८८ ॥ अद्य दिवा रजनी वा पक्षो मासस्तथतु रयनं वा । इति काल-परिच्छित्या प्रत्याख्यानं भवेनियमः ॥२३॥८६॥
भोज्य पदार्थों, सवारीकी चीजों, शयनके साधनों, स्नानके प्रकारों, शरीरमें रागवर्धक केसर-चन्दनादिके विलेपनों तथा मिस्सी-अंजनादिके प्रयोगों, फूलाक उपयोगों, ताम्बूल-वर्गकी वस्तुओं, वस्त्राभूषणके प्रकारों, काम-क्रीड़ाओं, संगीता-नृत्यवादित्रयुक्त गायनों और गीत मात्रोंमें जो आज अमुक समय तक दिनको, रात्रिको, पक्ष भरके लिये, एक महीने तक, द्विमास अथवा ऋतुविशेष-पर्यन्त, दक्षिणायन, उत्तरायन अथवा छहमास-पर्यन्त, इत्यादि रूपसे कालकी मर्यादा करके त्यागका जो विधान है वह 'नियम' कहलाता है।