________________
विषय-सूची
छठा अध्ययन
सल्लेखना - लक्षण सल्लेखनाके दूसरे नाम; समाधि
मरण और अपघात में अन्तर १६० |
१६१
१६०
सल्लेखना के दो भेद
'निःप्रतीकारे' और 'धर्माय' पदों
की विशेषता तथा दृष्टि सल्लेखनाकी महत्ता श्रादि
विवक्षित तपका स्वरूप मरणके बिगड़ने पर सारे किये
कराये पर पानी फिरना कैसे
सल्लेखना - विधि
सल्लेखनाके अतिचार
धर्मानुष्ठान- फल
१६३ |
१६४
१६१ चारों विशेषरण - पदोंकी दृष्टि
का स्पष्टीकरण व्रतिक-श्रावक-लक्षरण
निःश्रेयस और अम्युदय सुखसमुद्रोंके रूपमें द्विविध फलकी दृष्टिका अन्तरादिक
१६६ ।
दोनों सुख- समुद्रोंके 'निस्तीर''' दुस्तर' विशेषणों की दृष्टि १६६
१७०
निःश्रेयस-मुख-स्वरूप निःश्रेयस - सुख प्राप्त सिद्धोंकी स्थिति
अभ्युदय-सुख स्वरूप
सप्तम अध्ययन
श्रावक - पदोंकी संख्या और उनमें गुणवृद्धिका नियम १७४
१२७
१७४
'प्रतिमा' के स्थानपर 'श्रावकपद' के प्रयोगकी महत्ता ये पद पाँचवें गुग्णस्थानके उपभेद हैं, एकमात्र सल्लेखनाके अनुष्ठातासे सम्बन्ध नहीं रखते १७५ दर्शनिक - श्रावक - लक्षण
१७५
१६४
१६५
सामयिक - श्रावक - लक्षण १६८ आवर्ती, प्रणामों, कार्यात्सों
तथा उपवेशनोंकी विधि
१६८
५७१
१७३
१७६
१७८
'शीलसप्तक' 'निरतिक्रमणं' और निःशल्य. ' पदोंकी दृष्टि
...
१७८
१७६
व्यवस्थाका प्रभाचन्द्रीयटीका अनुसार वर्णन 'आवर्तत्रितय:' 'त्रियोगशुद्ध:'
और 'यथाजात : ' पदोंका विवेचन सामायिक - शिक्षाव्रतका सब
आचार इस पदमें शामिल,
दोनोंका दृष्टिभेद प्रोपधाऽनशन - लक्षण व्रतिकपद में प्रोषधोपवासका निरतिचार विधान आगया तब उसीको पुनः अलग पदके रूपमें रखनेका क्या अर्थ ? १८२
१८०
१८१
१८२
१८२