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__ समीचीन-धर्मशास्त्र
[अ०१ मोक्षमार्गका प्रणेता है---वह नियमसे परमार्थ प्राप्त होता है अन्यथा पारमार्थिक आप्तता बनती ही नहीं-इन तीन गुणों से एकके भी न. होने पर कोई परमार्थ प्राप्त नहीं हो सकता, ऐसा नियम है।'
. व्याख्या --पूर्वकारिकामें जिस परमार्थ प्राप्तके श्रद्धानको मुख्यतासे सम्यग्दर्शनमें परिगणित किया है उसके लक्षणका निर्देश करते हुए यहाँ तीन खास गुणोंका उल्लेख किया गया है, जिनके एकत्र अस्तित्वसे आप्तको पहचाना जा सकता है और वे है--१ निर्दोषता, सर्वज्ञता, ३ आगमेशिता । इन तीनों विशिष्ट गुणोंका यहाँ ठीक क्रमसे निर्देश हुआ है-निर्दोपताके बिना सर्वज्ञता नहीं बनती और सर्वज्ञताके बिना आगमेशिता असम्भव है। निर्दोषता तभी बनती है जब दोपोंके कारणीभूत ज्ञानावरण, दर्शनावरण,मोहनीय और अन्तराय नामके चारों घातिया कर्म समूल नष्ट हो जाते हैं। ये कर्म बड़े बड़े भूभृतों ( पर्वतों )की उपमाको लिये हुए हैं, उन्हें भेदन करके ही कोई इस निर्दोपताको प्राप्त होता है । इसीसे तत्त्वार्थसूत्रके मंगलाचरणमें इस गुणविशिष्ट प्राप्तको 'भेत्तारं कर्मभूभृतां' जैसे पदके द्वारा उल्लेखित किया है । साथही, सर्वज्ञको 'विश्वतत्त्वानां ज्ञाता' और आगमेशीको 'मोक्षमार्गस्य नेता' पदोंके द्वारा उल्लेखित किया है । प्राप्तके इन तीनों गुणोंका बड़ा ही युक्तिपुरस्सर एवं रोचक वर्णन श्रीविद्यानंद प्राचार्यने अपनी आप्तपरीक्षा और उसकी स्वोपज्ञ टीकामें किया है, जिससे ईश्वर-विषयकी भी पूरी जानकारी सामने
आ जाती है और जिसका हिन्दी अनुवाद वीरसेवामन्दिरसे प्रकाशित हो चुका है । अतः आप्तके इन लक्षणात्मक गुणोंका पूरा परिचय उक्त ग्रन्थसे प्राप्त करना चाहिए। साथ ही, स्वामी समन्तभद्रकी 'प्राप्तमीमांसा' को भी देखना चाहिये, जिस पर अकलंकदेवने 'अष्टशती' और विद्यानन्दाचार्यने 'अष्टसहस्री' नामकी महत्वपूर्ण संस्कृत टीका लिखी है।