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समीचीन-धर्मशास्त्र
[अ०२ कारणों (संवर-निर्जरा) को भी प्रकाशित करनेवाला दीपक है वह द्रव्यानुपयोग है, और वह अतविद्यारूप भावश्रुतके आलोकको विस्तृत करता है । यह द्रव्यान योग सम्यग्ज्ञानका विषय है इसलिये इसका जानना भी सम्यग्ज्ञान है।'
व्याख्या ---यहाँ जिस द्रव्यानुयोगको दीपकके रूपमें उल्लेखित किया गया है वह मिद्धान्तसूत्रादि अथवा तत्त्वार्थसूत्रादिके रूपमें द्रव्यागम है-द्रव्यश्रुत है-जो कि जीव-अजीव नामके मुतत्त्वों को, पुण्य-पायरूप कमप्रकृतियोंको तथा बन्ध-मोक्षको और बन्धके कारण (आम्रव) और मोक्षके कारणों ( संवर-निर्जरा) को अशेष-विशेषरूपसे प्ररूपित करता हुआ श्रुतविद्यारूप भावश्रुतके प्रकाशको विस्तृत करता है। ऐसी स्थितिमें द्रव्यानुयोगका जानना भी सम्यग्ज्ञान है । जिन नव तत्वोंके प्ररूपक द्रव्यागमका यहाँ उल्लेख है उनका स्वरूप द्रव्यानुयोग-विषयक शास्त्रों में विस्तारके साथ वर्णित है और इसलिये उसे यहां देनेकी ज़रूरत नहीं है, उन्हीं शास्त्रोंपरसे उसको जानना चाहिये ।
इस तरह सम्यग्ज्ञान विषय-भेदसे प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोगके रूपमें चार भेद रूप है। प्रस्तुत धर्मशास्त्रमें ज्ञानके इन्हीं चार भेदोंको स्वीकृत किया गया है, मतिज्ञानादिकको नहीं।
इस प्रकार स्वामी समन्तभद्राचार्य-विरचित ममीचीन-धर्मशास्त्र अपरनाम रत्नकरण्ड-उपासकाध्ययनमें सम्यग्ज्ञानवर्णन नामका दूसरा अध्ययन समाप्त हुा ।।२।।