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समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०४
____ हिंसादान-लक्षण परशु-कृपाण-खनित्र-ज्वलनायुध शङ्गि-शङ्खलादीनाम् । बधहेतूनां दानं हिंसादानं ब्रुवंति बुधाः ॥ ११ ॥ ७७ ॥ __ 'फरसा, तलवार, गेंती, कुदाली, अग्नि, आयुध (छुरीकटारी-लाठी-तीर आदि हथियार) विप, सांकल इत्यादिक वधके कारणोंका-हिंसाके उपकरणोंका-जो (निरर्थक) दान है उसे ज्ञानीजन-गणधरादिक मुनि-'हिंसादान' नामका अनर्थदण्ड कहते हैं। ___व्याख्या-यहाँ हिंसाके जिन उपकरणोंका उल्लेख है उनका दान यदि निरर्थक नहीं है-एक गृहस्थ अपनी प्रारम्भजा तथा विरोधजा हिंसाकी सिद्धिके लिये उन्हें किसीको देता है तो वह इस व्रतकी कोटिसे निकल जाता है क्योंकि अनर्थदण्डके लक्षण में पापयोगका जो अपार्थक (निरर्थक ) विशेषण दिया गया है उसकी यहाँ भी अनुवृत्ति है, वह 'दान' पदके पूर्वमें अध्याहृत ( गुप्त ) रूपसे स्थित है। इसी तरह यदि कोई गृहस्थ हिंसाके ये उपकरण अपने किसी पड़ोसी या इष्ट-मित्रादिकको इसलिये मांगे देता है कि उसने भी अपनी आवश्यक्ताके समय उनसे वैसे उपकरणोंको माँग कर लिया है और आगे भी उसके लेनेकी सम्भावना है तो ऐसी हालतमें उसका वह देना निरर्थक या निष्प्रयोजन नहीं कहा जा सकता और इसलिये वह भी इस व्रतका व्रती होते हुए व्रतकी कोटिसे निकल जाता है-उसमें भी यह व्रत बाधा नहीं डालता । जहाँ इन हिंसोपकरणोंके देने में कोई प्रयोजनविशेष नहीं है वहीं यह व्रत बाधा डालता है।
अपघ्यान-लक्षण बघ-बन्ध-च्छेदादेद्वेषाद्रागाच्च परकलत्रादेः । माध्यानमपत्र्यानं शासति जिनशासने विशदाः ॥१२॥७८॥