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समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०३ व्याख्या—यहाँ 'अवधिः' पदके द्वारा जिस अवधिज्ञानका उल्लेख है वह भवप्रत्यय अवधिज्ञान है, जो देवलोकमें भवधारण अर्थात् जन्म लेनेके साथ ही उत्पन्न होता है तथा उस भवकी स्थिति-पर्यन्त रहता है और जिसके द्वारा देश-कालादिकी अवधिविशेषके भीतर रूपी पदार्थों का एकदेश साक्षात् (देशप्रत्यक्ष) ज्ञान होता है । यह अवधिज्ञान ‘सर्वावधि' तथा ‘परमावधि' न होकर 'देशावधि' कहलाता है और अपने विपयमें निर्धान्त होता है । 'अष्टगुणाः' पदके द्वारा जिन आठ गुणोंका उल्लेख किया गया है वे हैं-१ अणिमा, २ महिमा, ३ लविमा, ४ प्राप्ति, ५ प्राकाम्य ६ ईशित्व, ७ वशित्व, और ८ कामरूपित्व । आगमानुसार 'अणिमा' गुण उस शक्तिका नाम है जिसमें बड़ेसे बड़ा शरीर भी अणुरूपमें परिणित किया जा सके। 'महिमा' गुण उस शक्तिका नाम है जिससे छोटेसे छोटा अणुरूप शरीर भी मेरुप्रमाण जितना अथवा उससे भी बड़ा किया जा सके । लघिमा गुण उस शक्तिका नाम है जिससे मेरु जैसे भारी शरीरको भी वायुसे अधिक हलका अथवा इतना हलका किया जा सके कि वह मकड़ी जालेके तन्तुओंपर निर्वाध रूपसे गति कर सके । 'प्राप्ति' गुण उस शक्तिविशेषको कहते हैं जिससे दूरस्थ मेरु-पर्वतादिके शिखरों तथा चन्द्र-सूर्योंके बिम्बोंको हाथकी अँगुलियोंसे छुआ जा सके । 'प्राकाम्य' गुण वह शक्ति है जिससे जलमें गमन पृथ्वीपर गमनकी तरह और पृथ्वीपर गमन जलमें गमनके समान उन्मजन-निमजन करता हुआ हो सके । 'ईशित्व' गुण उस शक्तिका नाम है जिससे सर्व संसारी जीवों तथा ग्राम नगरादिकों को भोगने-उपयोगमें लानेकी सामर्थ्य प्राप्त हो अथवा सबकी प्रभुता घटित हो सके। 'वशित्व' गुण उस शक्तिको कहते हैं निससे प्रायः सब संसारी जीवोंका वशीकरण किया जा सके । 'कामरूपित्व' गुण उस शक्तिका नाम है जिससे विक्रिया-द्वारा