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समामा
मी प्रकार
लोप-दूस
गिराने,
समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०३
अचौर्याऽणुव्रतके अतिचार चौरप्रयोग-चौराऽर्थादान-विलोप-सदृशसम्मिश्राः। होनाधिकविनिमानं पंचाऽस्तेये व्यतीपाताः ॥१२॥५॥ ___ 'चौरप्रयोग-चोरको चोरीके कर्ममें स्वयं प्रयुक्त (प्रवृत्त) करना, दूसरोंके द्वारा प्रयुक्त कराना तथा प्रयुक्त हुएकी प्रशंसा-अनुमोदना करना, अथवा चोरीके प्रयोगों (उपायों) को बतला कर चौर-कमंकी प्रवृत्ति में किमी प्रकार सहायक होना-, चौराऽर्थादान-जान बूझकर चोरीका माल लेना-, विलोप-दूसरोंकी स्थावर-जंगम अथवा चेतन अचेतनादिरूप सम्पतिको आग लगाने, बम गिराने, तेज़ाब छिड़कने, विष देने आदिके द्वारा नष्ट कर देना तथा राज्यके अर्थ-विषयक न्याय्य नियमोंको भंग करना-सदृशसंमिश्र-अनुचित लाभ उठाने अथवा दूसरोंको ठगनेकी दृष्टिसे खरीमें समान रंग-रूपादिकी खोटी तथा बहुमूल्यमें अल्पमूल्य वस्तुकी मिलावट करना और नकलीको जानबूझकर असलीके रूपमें देना-और हीनाधिकविनिमान-देने लेनेके बाटतराजू, गज, पैमाने आदि कमती-बढ़ती रखना और उनके द्वारा कमतीबढ़ती तोल-माप करके अनुचित लाभ उठाना; ये पाँच अस्तेयकेअचौर्याणुव्रतके--व्यतिपात हैं-अतिचार अथवा दोष है।'
व्याख्या-यहाँ जिन अतिचारोंका उल्लेख है उनमें चौथा 'सदृशसम्मिश्र' नामका अतिचार वह है जिसके स्थान पर तत्त्वार्थसूत्रमें 'प्रतिरूपकव्यवहार' नाम दिया है और जिसे सर्वार्थसिद्धिकारने 'कृत्रिम हिरण्यादिके द्वारा वंचना-पूर्वक व्यवहार' बतलाया है । सदृशसम्मिश्र अपने विषयमें अधिक स्पष्ट और व्यापक है। तीसरा अतिचार 'विलोप है, जो तत्त्वार्थसूत्र में दिये हुए 'विरुद्ध-राज्यातिक्रम' नामक अतिचारसे बहुत कुछ भिन्न तथा अधिक विषयवाला है । विरुद्ध-राज्यातिक्रमकी जो व्याख्या सर्वार्थसिद्धिकारने दी है उससे यह मालूम होता