________________
कारिका ३१-३२] सम्यग्दर्शनकी उत्कृष्टता मोक्षकी प्राप्तिके उपायस्वरूप सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र इन तीनोंमें--सम्यग्दर्शनको कर्णधार-खेवटिया कहते हैं।' ___ व्याख्या-समुद्रमें पड़ी हुई नावको खे कर उसपार लेजानेमें खेवटियाको जो पद प्राप्त है वही पद संसार-समुद्रमें पड़ी हुई जीवन-नैय्याको खे कर मोक्षतट पर पहुँचाने में सम्यग्दर्शनको प्राप्त है।
सम्यग्दर्शनकी उत्कृष्टता सम्यग्दर्शनको उसकी जिस उत्कृष्टताके कारण 'कर्णधार' कहा गया है उसका स्पष्टीकरण करते हुए आचार्यमहोदय लिखते हैं:--
विद्या-वत्तस्य संभति-स्थिति-वृद्धि-फलोदयाः ।
न सन्त्यसति सम्यक्त्वे बीजाऽभावे तरोरिव ॥३२॥ 'जिस प्रकार बीजके अभावमें-बीजके बिना-वृक्षकी उत्पत्ति वृद्धि और फलसम्पत्ति नहीं बन सकती उसी प्रकार सम्यक्त्वके अभावमें-सम्यग्दर्शनके बिना--सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रकी उत्पत्ति, स्थिति-स्वरूपमें अवस्थान-,वृद्धि-उत्तरोत्तर उत्कर्षला---
और यथार्थ-फलसम्पत्ति-मोक्षफलकी प्राप्ति नहीं हो सकती।' ___ व्यारव्या-यहाँ · सम्यक्त्व' शब्दके द्वारा गृहीत जो सम्यग्दर्शन वह मूलकारण अथवा उपादानकारणके रूपमें प्रतिपादित . है। उसके होनेपर ही ज्ञान-चारित्र सम्यग्ज्ञान-सम्यकचारित्रके रूपमें परिणत होते हैं, यही उनकी सम्यग्ज्ञान-सम्यकचारित्ररूपसे संभृति है। सम्यग्दर्शनकी सत्ता जबतक बनी रहती है तबतक ही वे अपवे स्वरूपमें स्थिर रहते हैं, अपने विषयमें उन्नति करते
** भवाब्धौ भव्यसार्थस्य निर्वाणद्वीपयायिनः।
चारित्रयानपात्रस्य कर्णधारो हि दर्शनम् ॥ -चारित्रसार