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समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०१ हैं और यथार्थ फलके दाता होते हैं। सम्यन्दर्शनकी सत्ता न रहनेपर उत्पन्न हुए सम्यग्ज्ञान-सम्यकचारित्र भी अपनी धुरी पर स्थिर नहीं रहते-डोल जाते हैं--उनमें विकार आ जाता है, जिससे उनकी वृद्धि तथा यथार्थ-फलदायिनी शक्ति रुक जाती है
और वे मिथ्याज्ञान-मिथ्याचारित्रमें परिणत होकर तद्रप ही कहे जाते हैं तथा यथार्थफल जो आत्मोत्कर्ष-साधन है उसको प्रदान करनेमें समर्थ नहीं रहते। अतः ज्ञान और चारित्रकी अपेक्षा सम्यग्दर्शनकी उत्कृष्टता स्पष्ट सिद्ध है-वह उन दोनोंकी उत्पत्ति आदिके लिये बीजरूपमें स्थित है।
___ मोही मुनिसे निर्मोही गृहस्थ श्रेष्ठ गृहस्थो मोक्षमार्गस्थो निर्मोहो नैव मोहवान् ।
अनगारो, गृही श्रेयान् निर्मोहो मोहिनो मुनेः ॥३३॥ ‘निर्मोही-दर्शनमोहसे रहित सम्यग्दृष्टि--गृहस्थ मोक्षमार्गी है--धर्मपर आरूढ है, भले ही वह कुल, जाति, वेष तथा चारित्रादिसे कितना ही हीन क्यों न हो-किन्तु मोहवान-दर्शनमोहसहित मिथ्यादृष्टि-गृहत्यागी मुनि मोक्षमार्गी नहीं है-धर्म पर आरूढ नहीं है, भले ही वह कुल-जाति-वेषसे कितना ही उच्च तथा बाह्य चारित्रादिकमें कितना ही बढ़ा-चढ़ा क्यों न हो। अतः जो भी गृहस्थ मिथ्यादर्शन रहित-सम्यग्दृष्टि है वह दर्शनमोहसे युक्त (प्रत्येक जातिके ) मिथ्यादृष्टि मुनिसे श्रेष्ठ है।' ___ व्याख्या---गृहत्यागी मुनिका दर्जा आमतौर पर गृहस्थसे ऊँचा होता है; परन्तु जो गृहस्थ सम्यग्दर्शनसे सम्पन्न है उसका दर्जा जैनागमकी दृष्टि-अनुसार उस मुनिसे ऊँचा है जो सम्यग्दर्शनसे सम्पन्न नहीं है । गृहस्थ-पदमें सभी जातियों और सभी श्रेणियोंके मनुष्योंका समावेश होता है और चाण्डालके पुत्र
+अनगारी इति पाठान्तरम् ।