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समीचीन-धर्मशास्त्र
[अ०१ १ वीर्यान्तराय, २ भोगान्तराय, ३ उपभोगान्तराय, ४ दानान्तराय, ५ लाभान्तराय, ६ निद्रा, ७ भय, ८ अज्ञान, ६ जुगुप्सा, १० हास्य, ११ रति, १२ अरति, १३ राग, १४ द्वेष, १५ अविरति, १६ काम, १७ शोक, १८ मिथ्यात्व ।। ___ इनमेंसे कोई भी दोष ऐसा नहीं है जिसका दिगम्बर समाज आप्तमें सद्भाव मानता हो । समान दोषोंको छोड़कर शेषका अभाव उसके दूसरे वर्गों में शामिल है; जैसे अंतराय कर्मके अभावमें पाँचों अन्तराय दोषोंका, ज्ञानावरण कर्मके अभावमें अज्ञान दोषका और दर्शनमोह तथा चारित्रमोहके अभावमें शेष मिथ्यात्व, शोक, काम, अविरति, रति, हास्य और जुगुप्सा दोषों का अभाव शामिल है। श्वेताम्बर-मान्य दोषोंमें क्षुधा, तृपा तथा रोगादिक कितने ही दिगम्बर-मान्य दोषोंका समावेश नहीं होताश्वेताम्बर भाई श्राप्तमें उन दोषोंका सद्भाव मानते हैं और यह सब अन्तर उनके प्रायः सिद्धान्त-भेदोंपर अवलम्बित है। सम्भव है इस भेददृष्टि तथा उत्सन्नदोष आप्तके विषयमें अपनी मान्यताको स्पष्ट करनेके लिए ही इस कारिकाका अवतार हुआ हो। इस कारिकाके सम्बन्धमें विशेषविचारके लिये ग्रन्थकी प्रस्तावनाको देखना चाहिए।
आप्त-नामावली परमेष्ठी परंज्योतिर्विरागो विमलः कृती। सर्वज्ञोऽनादिमध्यान्तः सार्वःशास्तोपलाल्यते ॥७॥ 'उक्त स्वरूपको लिये हुए जो प्राप्त है वह परमेष्ठी ( परम पदमें स्थित) परंज्योति (परमातशय-प्राप्त ज्ञानधारी),विराग (रागादि मावकर्मरहित), विमल (ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मवजित), कृती ( हेयोपा
+देखो, विवेकविलास और जैनतत्त्वादर्श आदि श्वेताम्बर ग्रन्थ ।