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कारिका १८] प्रभावनाङ्ग लक्षण
प्रभावनाङ्ग-लक्षण अज्ञान-तिमिर-व्याप्तिमपाकृत्य यथायथम् । जिनशासन-माहात्म्य-प्रकाशः स्यात्प्रभावना ॥१८॥
'अज्ञान-अन्धकारके प्रसारको ( सातिशय ज्ञानके प्रकाश द्वारा ) ममुचितरूपसे दूर करके जिनशासनके माहात्म्यको-जैनमतके तत्त्वज्ञान और सदाचार एवं तपोविधानके महत्वको-जो प्रकाशित करना है-लोक-हृदयोंपर उसके प्रभावका सिक्का अंकित करना है-- उसका नाम 'प्रभावना' अंग है।' ___ व्याख्या--जिनशासन जिनेन्द्र-प्रणीत आगमको कहते हैं । उसका माहात्म्य उसके द्वारा प्रतिपादित अनेकान्तमूलक तत्त्वज्ञान
और अहिंसामूलक सदाचार एवं कर्मनिर्मलक तपोविधानमें संनिहित है । जिनशासनके उस माहात्म्यको प्रकटित करना-लोकहृदयोंपर अंकित करना-ही यहाँ 'प्रभावना' कहा गया है। और वह प्रकटीकरण अज्ञानरूप अन्धकारके प्रसार (फैलाव) को समुचितरूपसे दूर करनेपर ही सुघटित हो सकता है, जिसको दूर करनेके लिये सातिशय ज्ञानका प्रकाश चाहिये । और इससे यह फलित होता है कि सातिशयज्ञानके प्रकाशद्वारा लोक-हृदयों में व्याप्त अज्ञान-अन्धकारको समुचितरूपसे दूर करके जिनशासनके माहात्म्यको जो हृदयाङ्कित करना है उसका नाम 'प्रभावना' है। और इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कोरी धन-सम्पत्ति अथवा बलपराक्रमकी नुमाइशका नाम 'प्रभावना' नहीं है और न विभूतिके साथ लम्बे-लम्बे जलूसोंके निकालनेका नाम ही प्रभावना है, जो वस्तुतः प्रभावनाके लक्ष्यको साथमें लिये हुए न हों। हाँ, अज्ञान अन्धकारको दूर करनेका पूरा आयोजन यदि साथमें होतो वे जाहन उसमें सहायक हो सकते हैं । साथ ही, यह भी स्पष्ट हो जाता है कि प्रभावनाका कार्य किसी जोर-जबर्दस्ती अथवा अनुचित