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श्रीमत्स्वामि-समन्तभद्राचार्य-विरचित समीचीन-धर्मशास्त्र
अपरनाम रत्नकरण्ड-उपासकाध्ययन मानुवाद-व्याख्यारूप भाष्यसे मण्डित
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भाष्यका मंगलाचरण श्रीवद्धमानमभिनम्य समन्तभद्र सद्बोध-चारुचरिताऽनघवाक्स्वरूपम् । सद्धर्मशास्त्रमिह रत्नकरण्डकाख्यं
व्याख्यामि लोक-हित-शान्ति-विवेक-वृद्धये ॥१॥ 'जो सम्यग्ज्ञानमय हैं, सञ्चारित्ररूप हैं और जिनके वचन निष हैं उन समन्तभद्र ( सब ओरसे भद्ररूप-मंगलमय ) श्रीवर्द्धमान (भगवान महावीर) को तथा श्रीवर्द्धमान (विद्याविभूति, कीर्ति आदि लक्ष्मीसे वृद्धिको प्राप्त हुए ) समन्तभद्र (स्वामी समन्तभद्राचार्य) को ( अलग अलग तथा एकसाथ ) नमस्कार करके, मैं ( उनका विनम्र सेवक जुगलकिशोर ) लौकिक जनोंकी हितवृद्धि, शान्तिवृद्धि और विवेकवृद्धिके लिये उस 'समीचीनधमशास्त्र'की व्याख्या करता हूँ जो लोकमें 'रत्नकरण्ड'नामसे अधिक प्रसिद्धि को प्राप्त है।'