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समीचीन-धर्मशास्त्र जुदा ही अङ्कित है और अलगसे भी विपयसूची तथा अनुक्रमणिकाके साथ प्रकाशित हुआ है । यहाँ संक्षेपमें कुछ थोड़ासा ही सार दिया जाता है और वह इस प्रकार है:
(१) भगवज्जिनसेनने, आदिपुराण में, समन्तभद्रको 'महान् कविवेधा'-कवियोंको उत्पन्न करनेवाला महान विधाता (ब्रह्मा)लिखा है और साथ ही यह प्रकट किया है कि 'उनके वचनरूपी वज्रपातसे कुमतरूपी पर्वत खण्ड-खण्ड हो गए थे'
नमः समन्तभद्राय महते कविवेधसे ।
यद्वचो वज्रपातेन निर्भिन्नाः कुमताद्रयः॥ (२) वादिराजसूरिने,यशोधर चरितमें,समन्तभद्रको 'काव्यमा णिक्योंका रोहण' (पर्वत) लिखा है और यह भावना की है कि वे हमें सूक्तिरत्नोंके प्रदान करनेवाले होवें ।' -
श्रीमत्समन्तभद्राद्याः काव्य-मणिक्यरोहणाः । सन्तु नः संततोत्कृष्टाः सूक्तिरत्नोत्करप्रदाः ।। (३) वादीभसिंहसूरिने, गद्यचिन्तामणिमें, समन्तभद्रमुनीश्वरका जयघोष करते हुए उन्हें 'सरस्वतीकी स्वछन्द-विहारभूमि' बतलाया है और लिखा है कि 'उनके वचनरूपी वज्रके निपातसे प्रतिपक्षी सिद्धान्त-रूप पर्वतोंकी चोटियाँ खण्ड-खण्ड हो गई थीं-अर्थात समन्तभद्रके आगे प्रतिपक्षी सिद्धान्तोंका प्रायः कुछ भी मूल्य या गौरव नहीं रहा था और न उनके प्रतिपादक प्रतिवादीजन ऊँचा मुंह करके ही सामने खड़े हो सकते थे।'सरस्वती-स्वर-विहारभूमयः समन्तभद्रप्रमुखा मुनीश्वराः। जयन्ति वाग्वज्र-निपात-पाटित-प्रतीपराद्धान्त-महीध्रकोटयः॥
(४) वर्द्धमानसृरिने, वराङ्ग चरितमें, समन्तभद्रको 'महाकवीश्वर', 'कुवादिविद्या-जय-लब्ध-कीर्ति' और 'सुतर्कशास्त्रामृत