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प्रस्तावना
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(११) अजितसेनाचार्यने, अलङ्कारचिन्तामणिमें, कई पुरातन पद्य ऐसे संकलित किये हैं जिनसे समन्तभद्रके वाद-माहात्म्यका कितना ही पता चलता है। एक पद्यसे मालूम होता है कि 'समन्तभद्र कालमें कुवादीजन प्रायः अपनी स्त्रियोंके सामने तो कठोर भापण किया करते थे-उन्हें अपनी गर्वोक्तियाँ अथवा बहादुरीके गीत सुनाते थे-परन्तु जब योगी समन्तभद्रके सामने
आते थे तो मधुरभापी बन जाते थे और उन्हें 'पाहि पाहि'रक्षा करो रक्षा करा अथवा आप ही हमारे रक्षक है-ऐसे सुन्दर मृदुल वचन ही कहते बनता था ।' और यह सब समन्तभद्रके असाधारण-व्यक्तित्वका प्रभाव था। वह पद्य इस प्रकार है
कुवादिनः स्वकान्तानां निकटे परुपोक्तयः। समन्तभद्र-यत्यग्रे पाहि पाहीति सूक्तयः॥ दूसरे पद्य से यह जाना जाता है कि 'जब महावादी श्रीसमन्त भद्र (सभास्थान आदिमें ) आते थे तो कुवादीजन नीचामुख करके अंगूठोंसे पृथ्वी कुरेदने लगते थे अर्थात उन लोगों परप्रतिवादियोंपर-समन्तभद्रका इतना प्रभाव पड़ता था कि वे उन्हें देखते ही विषण्णवदन हो जाते और किंकर्तव्यविमूढ बन जाते थे।' वह पद्य इस प्रकार है
श्रीमत्समन्तभद्राख्ये महावादिनि चागते ।
कुवादिनोऽलिखन्भूमिमंगुष्ठरानताननाः ॥ _और एक तीसरे पद्यमें यह बतलाया गया है कि-'वादी समन्तभद्रकी उपस्थितिमें, चतुराईके साथ स्पष्ट शीघ्र और बहुत बोलनेवाले धूर्जटिकी-तन्नामक महाप्रतिवादी विद्वानकीजिह्वा ही जब शीघ्र अपने बिल में घुस जाती है-उसे कुछ बाल नहीं आता तो फिर दूसरे विद्वानोंकी तो कथा (बात) ही क्या