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समीचीन-धर्मशास्त्र . मद्यमांसमधुत्यागसंयुक्ताणुव्रतानि नुः । .. अष्टौ मूलगुणाः पंचोदुम्बरैश्चाभकेष्वपि ॥ -रत्नमाला " ऐसी हालतमें यह पद्य भी संदेहकी दृष्टिसे देखे जानेके योग्य नहीं । यह अणुव्रतोंके बाद अपने उचित स्थान पर दिया गया है । इसके न रहनेसे, अथवा यो कहिये कि श्रावकाचारविषयक ग्रन्थमें श्रावकोंके मूलगुणोंका उल्लेख न होनेसे, ग्रन्थमें एक प्रकारकी भारी त्रुटि रह जाती, जिसकी स्वामी समन्तभद्र-जैसे अनुभवी ग्रन्थकारोंसे कभी आशा नहीं की जा सकती थी । इसलिये यह पद्य भी क्षेपक नहीं हो सकता।
संदिग्ध पद्य ग्रन्थमें पोषधोपवास नामके शिक्षाव्रतका कथन करनेवाले दो पद्य इस प्रकारसे पाये जाते है
(१) पर्वण्यष्टम्यां च ज्ञातव्यः प्रोषधोपवासस्तु। .
____चतुरभ्यवहार्याणां प्रत्याख्यानं सदिच्छाभिः ॥१०६॥ (२) चतुराहार विसजनमुपवासः प्रोषधः सकृद्भुक्तिः।
स प्रोषधोपवासो यदुपोष्यारंभमाचरति ॥१०६।। इनमें पहले पद्यसे प्रोपधोपवास व्रतका कथन प्रारम्भ होता है और उसमें यह बतलाया गया है कि 'पर्वणी ( चतुर्दशी) तथा अष्टमीके दिनोंमें सदिच्छासे जो चार प्रकारके आहारका त्याग किया जाता है उसे 'प्रोषधोपवास' समझना चाहिये। यह प्रोषधोपवास व्रतका लक्षण हुआ । टीकामें भी निम्न वाक्यके द्वारा इसे लक्षण ही सूचित किया है
'अथेदानी प्रोषधोपवासलक्षणं शिक्षाव्रतं व्याचक्षाणः प्राह'
इस पद्यके बाद दो पद्योंमें उपवास-दिनके विशेष कर्तव्योंका निर्देश करके व्रतातीचारोंसे पहले, वह दूसरा पद्य दिया है जो